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Sunday, August 13, 2017

* दोकड़ियाँ ... Dokadiyaan

(१) ढूँढो इल्मी आलिम नहीं, आमिल मुर्शिद को ।
     नौसिखिया फ़ाज़िल नहीं, कामिल मुर्शिद को ।।


(२) जो साहब आरिफ़ होते हैं उनकी मज़लिस में मैअ-ए-इरफ़ाँ बँटती है ।
     जो उनकी सोहबत करते और  कलमा पढ़ते उनकी मज़े में कटती है ।। 

(३) जो ताइब होते हैं वो तौबा कीया करते हैं ।
      बुराईयोँ को जल्द ही छोड़ दीया करते हैं ।।

(४) हक़-ता'अला वो  हक़ीक़त है, सच है, जो बोला नहीं जाता ।
      राज़-ए-हक़ मेहरे-मुर्शिद से खुलता है, खोला नहीं जाता ।।

(५) बहुत मुश्किल है बनना कमल-उल-गन्दगी ।
      ज़नाब चमन-ए-ग़ुलाब में गुज़ारो ये ज़िन्दगी ।।

(६) बहुत मुश्क़िल है बनना कीचड़ का कमल ।
     गुलाबी बाग़ में रह कर करो रूहानी अमल ।। 

(७) वक़्त पड़ने पर गधे को भी सर साब कहना पड़ता है ।
      तुम के तो लायक़ न हो, उसे भी आप कहना पड़ता है ।।
                               
                                                        - ( इकोभलो )

* रचना तिथि : १३-०६-२००६, संपादन तिथि : १३-०८-२०१७           
     

Friday, August 11, 2017

* प्रेम... Prem

प्रेम प्यार इश्क़ लव मुहब्बत । प्रेम भाव से होती सच्ची इबादत ।।

भक्ति-भाव के  बिन प्रभु पाया है किन । प्रेम-रूप हैं ईश्वर, नहीं हैं प्रेम से भिन्न ।।
प्रेम-भक्ति किये जाओ निश और दिन । प्रेम-जागृति हो उन हृदयों में जो प्रेमहीन ।।

प्रेम प्यार इश्क़ लव मुहब्बत । प्रेम भाव से होती सच्ची इबादत ।।

प्रेम की बँसी, प्रेम की वीणा, प्रेम की बीन । प्रेम से भरा हो आसमां और ये ज़मीन ।।
नीली छतरी देने वाले, हमें छतरी दो नवीन । हे प्रभु आसमाँ लाल करो, हरी हो ज़मीन ।।

प्रेम प्यार इश्क़ लव मुहब्बत । प्रेम भाव से होती सच्ची इबादत ।।

नीली छतरी से ऊब गए, मिले छतरी लाल । हरयाली पर लाली हो, सागर, गगनछत लाल ।।
क्योंकि नीला नहीं, प्रेम का रँग होता है लाल । हृदय परिवर्तन से ही होगा ये जादू कमाल ।।

प्रेम प्यार इश्क़ लव मुहब्बत । प्रेम भाव से होती सच्ची इबादत ।।

                                                                             - ( इकोभलो )

* रचना तिथि : २००५, संपादन तिथि : ११-०८-२०१७                        

Tuesday, August 8, 2017

Boojho to kya hai SAUT_O_CHIRAAG Dillee... Boojha to wah wah hai nahin to udegi khillee...



सारे जहां को रोशन करता है एक चिराग ।
चिराग दिल में है वो दिल है दिल-ऐ-दिमाग ।।
चिराग में गैबी सौत है सौत हयात का आब ।
आब बनाता बन्दे को आज़ाद मस्ताना साब ।।



                                          saare jahaan ko roshan karata hai ek chiraag .
                                          chiraag dil mein hai vo dil hai dil-ai-dimaag ..
                                          chiraag mein gaibee saut hai saut hayaat ka aab .
                                                                  aab banaata bande ko aazaad mastaana saab .. 
                                    
                                                                                                         - ( Icobhalo )
    

Monday, August 7, 2017

* कामिनी मतलब कमीनी... Kamini mean fuccker

                   आज के यानि कि कलियुग के काल में यदि किसी लड़की अथवा महिला को 'कामिनी' यानि कि 'सेक्सी' कह दिया जाये तो वह आमतौर पर बुरा नहीं मानती बल्कि प्रसन्न होती है ! जबकि यह संबोधन पूर्व के युगों में गाली समझा जाता था । दीर्घ-कालान्तर पश्चात् ये संबोधन 'कमीनी' में परिवर्तित हो गया है । अब भी सुना व देखा जाता है ज़िंदगी में या फिल्मों में कि यदि कोई लड़की किसी लड़के के साथ मुँह काला कर आती है तो उसकी माँ कहती है :- "कहाँ से मुँह काला कर आई कमीनी-कुत्तिया ?" । यह कमीनी-कुत्तिया वास्तव में कामिनी-कुत्तिया का ही परिवर्तित या विकृत संबोधन है ।
                  कामिनी-कुत्तिया का अर्थ है 'इरोटिक-बिच' (Erotic-bitch) 'होट-बिच' (hot-bitch) यानि कि 'गर्म-कुत्तिया' जोकि 'हॉट-डोग' (Hot-dog) की तलाश में रहती है । इनसे प्रेरित 'हॉट एंड सेक्सी' लोग पश्चिमी-देशों में ज़्यादा हैं, वैसे भारत में दो हॉट-एंड-सेक्सी व्यक्ति बड़े मशहूर हुए हैं जिन्हें आप भली-भाँति न्यूज़-मीडिया के ज़रिये जान चुके हैं... जी हाँ मोनिंदर और उसका नौकर सुरेन्दर उर्फ़ सतीश नोएडा के निठारी इलाके में रहने वाले दो असुर । वैसे पश्चिमी देशों में हॉट-एंड-सेक्सी लोग ज़्यादा हैं, वहां के एक फ़ास्ट-फ़ूड का नाम भी उन्होंने हॉट-डोग रखा है । भारत में भी यह फ़ास्ट-फ़ूड  'होट-डोग'  के नाम से ही उपलब्ध है । लेकिन फिर भी ख़ैर है भारत की इस कारण से कि भारत के कल्चर का जो बेस है, भारत की संस्कृति का जो आधार है वह "स्वीट-एंड-स्पिरिचुअल" (Sweet-and-spiritual) है ... वह "सौम्य-एवं-अध्यात्मिक" है । इसी आधार के कारण से ही भारत विश्व में के सभी देशों से अधिक प्रिय है मुझे । अन्तः मैं कहना चाहता हूँ "सारे जहाँ से अच्छा भारत हमारा है, भारत देश सब देशों से न्यारा है" । 
                                                                                                         - ( इकोभलो )
* रचना तिथि : १२-०२-२००७ , संपादन तिथि : ०७-०८-२०१७                                          

Sunday, August 6, 2017

* ऐेे इन्सान मन को मार... Ai Insaan man ko maar

 ऐेे इन्सान मन को मार, क्योंकि तूं है प्राणियों में सरदार ।
मनजीतै तो तू जगजीत, छोड़ दे मनप्रीत होजा ख़बरदार ।।
मन को अपने अधीन करना,  समझो आँधी को रोकने जैसा ।
कोई सु में रत सुरत सूरवीर बीर  ही, कर सकता है कुछ ऐेैसा ।।
ये सुरत चलाते सुमिरन-रुपी गोली, तो मन मर जाता इस से ।
अभ्यास द्वारा कुछ भी असंभव नहीं है, तो कैसे बचेगा मन ये ।।
वीरवान-सुरत को करना चाहे काबू, दुष्ट मन के पँजे का जादू ।
पर ये  सुरत, शब्द-अभ्यास द्वारा मन को ही कर लेता है काबू ।। 
                                    
                                       - ( कुलदीप सिंह 'इकोभलो' )
* रचना तिथि : २००३                    

Saturday, July 29, 2017

* धन्य सतगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये... Dhanya Satguru tapat mahi thand bartaye


योगी योग कराये, ध्यानी ध्यान लगाए ।
तपसी तपस्या करे, व भक्त नाम कमाए ।।
धन्य सतगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।
वाह परमगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।।

कोई तो धयान बताये, कोई ज्ञान सुनाये ।
कोई पूजा पाठ कराये, कोई जाप जपाये ।।
धन्य सतगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।
वाह परमगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।। 

सतगुरू सुरत को शब्द के संग जुड़वाये ।
सूरत-शब्द योग ही नाम कमाई कहलाये ।।
धन्य सतगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।
वाह परमगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।।

काम क्रोध की अग्नि में जगत जलंदा जाये ।
प्रभू  प्रकट हुए, तपत माहि ठण्ड रखण ताये ।।
धन्य सतगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।
वाह परमगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।।

                                    - ( कुलदीप सिंह 'इकोभलो' ) 

* रचना तिथि : १०-०३-२००२ , संपादन तिथि : २९-०७-२०१७                 

Thursday, July 27, 2017

* प्रभू-आराधना द्वारा मनोसाधना... PRABHU-ARADHANA SE MANO-SADHNA ....

मित्रों हमें प्रभू की साधना नहीं मनोसाधना करनी है, प्रभू तो सधा हुआ है पहले से ही, हमें केवल इक मन को साधना है, और ये मन सधता है प्रभू की आराधना द्वारा, एवं प्रभू-आराधना मनोवृत्तियों को प्रभू की ओर प्रवृत करने से आरम्भ होती है, मन का काम है मनन-सुमिरन करना, इस मन को प्रभू के स्मरण में लगाने की आवश्यक्ता है, प्रभू को देखा नहीं तो प्रभू का सिमरन कैसे हो ? हमे एैसे इन्सान को ढ़ूँढ़ना होगा जिसमे प्रभू का, श्रीभगवान का प्राकट्य हुआ हो... क्योंकि इन्सान-रूपी चोले में ही प्रकट होते हैं श्री-भगवान । एैसा इन्सान इन्साँ-अल्ला है, नर-नारायण है, गाॅड-इन-मैन है, और वही सच्चा सन्त-फ़कीर है, उसके बताये नाम का ही हमें सिमरन करना चाहिये ।                                                                                          
                                                                                                 - ( इकोभलो ) 

*

**रचना तिथि : ०३-०५-२०१५ 

ICoBhaLo www.icobhalo.blogspot.in: * सतसिख सतगुरु... SAT-SHISH SAT-GURU...

ICoBhaLo www.icobhalo.blogspot.in: * सतसिख सतगुरु... SAT-SHISH SAT-GURU...: धन धन सतगुरु, वाह गुरु, गुरु वाह वाह । गुरु से बड़ा न कोई, जहाँ चाह वहाँ राह ।। सतसिख को सतगुरु की होती है चाह । दिल की दिले-दिमाग को...

* सतसिख सतगुरु... SAT-SHISH SAT-GURU...


धन धन सतगुरु, वाह गुरु, गुरु वाह वाह ।

गुरु से बड़ा न कोई, जहाँ चाह वहाँ राह ।।

सतसिख को सतगुरु की होती है चाह ।

दिल की दिले-दिमाग को होती है राह ।।


                           - (इकोभलो)



*  रचना तिथि : १३-०६-२००६ 

* श्री प्रेमार्थी गीता ... Shree Premarthi Geeta...

श्रीदेवों महात्माओँ और संतों ने, प्रेम को बहुत गाया ।
कलगीधर कह गए जिन प्रेम किया तिन प्रभु पाया ।।
सन्त कबीर कह गए, प्रेम के पढ़े से पण्डित होते हैं ।
श्रेष्ट कर्म प्रेम कीजिये, हम वही पाते हैं जो बोते हैं ।।
प्रेम में ऐसा बल है, कि पत्थर को मोम कर दे ।
ईर्षालु को ये लाल प्रेम जी, श्री प्रेमी में बदल दे ।।
पिछड़े हुए पीवें जो प्रेम रस, हो जाएँ वो आगे ।
जो पीने लग जाएँ ये सुरस, उनके भाग जागे ।।
जिसने प्रेम प्याला पीया, उसने जन्म सफल कीया ।
उसे माया से वैराग उपजा, भाया प्रीतम प्यारा पीया ।।
                         
                                  - ( कुलदीप सिंह 'इकोभलो' )
                
*  रचना तिथि : २१-०४-२००७ , सम्पादन तिथि : २७-०७-२०१७    

Tuesday, July 25, 2017

* कुछ ही इन्सान बचे हैं जो इन्सान हैं... Kuchh hee Insaan bachey hain jo insaan hain...

कुछ ही इन्सान बचे हैं जो इन्सान हैं, और हँसते हैं ।
वो पाक जगह  मुबारक है, जहाँ इन्सान बस्ते हैं ।।
इन्सानों की शक्ल में, बहुत कालिये नाग हैं ।
और इन्सानों की शक्ल में ही कालिये काग हैं ।।
ये नाग डँसते तो हैं, पर कभी हँसते नहीं हैं ।
ये काग कौओ कौओ करते हैं हँसते नहीं हैं ।।
कुछ ही इन्सान बचे हैं, जो इन्सान हैं और हँसते हैं ।
वो पाक जगह  मुबारक है, जहाँ इन्सान बस्ते हैं ।।
मनुष्यों की ही कीमत है, बाकि जीव सस्ते हैं । 
वो पवित्र स्थान धन्य है, जहाँ मनुष्य बस्ते हैं ।।
कुछ ही इन्सान बचे हैं, जो इन्सान हैं और हँसते हैं ।
वो पाक जगह  मुबारक है, जहाँ इन्सान बस्ते हैं ।।
                                         
                                                     - ( इकोभलो )


* रचना तिथि : २५-०५-२०१७ , संपादन तिथि : २५-०७-२०१७            

Saturday, July 22, 2017

अष्टाँक-योग : योग के आठ अंक... Ashtank-Yog : Yog ke aath ank

(१) योग -> योगश्चित्तवृत्तिनिरोध: 
(२) हठ योग -> हकार (श्वास) ठकार (प्रश्वास)   सँयम ।
(३) प्राणायाम -> पूरक : कुम्भक : रेचक (१:४ :२) 
(४) चार-साधन -> वैराग, विवेक, षट्सम्पत्ति, मुमोक्षता ।
(५) पाँच-मुद्राऐं -> चाचरी, भूचरी, खेचरी, अगोचरी, उनमुनी ।
(६) षट्सम्पत्ति -> सम, दम, श्रद्धा, समाधानता, उपराम, तितिक्षा ।
(७) सात-चक्र -> गुदा, इन्द्री, नाभि, हृदय, कण्ठ, आज्ञा, सहस्त्रार ।
(८) अष्टाँग-योग -> यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान,                                   समाधी ।
                                                              - ( इकोभलो


* रचना तिथि : २००१ 
    

Friday, July 21, 2017

त्यागें त्यागन नीका... Tyagye tyagan neeka...

त्यागें त्यागन नीका, पायें ज्योति अखण्ड ।
काम क्रोध लोभ मोह त्यागें, त्यागें घमण्ड ।।

डंड को त्यागें, पिण्ड को त्यागें, और त्यागें अण्ड ।
अण्ड को त्यागना ही समझो, त्यागना ये  ब्रह्मण्ड।।
ब्रह्माण्ड रुपी नदिया के पार ही है सच्चा सचखण्ड । 
सभी मनुष्यों की जजनी भंड है, एक पुरुष अभंड ।।

त्यागें त्यागन नीका, पायें ज्योति अखण्ड ।
काम क्रोध लोभ मोह त्यागें, त्यागें घमण्ड ।।

सचखण्ड वसै निरंकार, जिसका नहीं आकार ।
सचखण्ड है, ब्रह्माण्ड रूपी नदिया के उस पार ।।
भवजल के उस पार, निहचल अटल सरकार ।
ब्रह्माण्ड प्रभू का राष्ट्र है, और पति सतकरतार ।।

त्यागें त्यागन नीका, पायें ज्योति अखण्ड ।
काम क्रोध लोभ मोह त्यागें, त्यागें घमण्ड ।।

भाई रे ना त्याग तू अन्न-जल, ना त्याग तू भंड ।
और ना त्याग तू बच्चे, ना त्याग तू खर्चे-फण्ड ।।
बरत ले तूं बरतन नीका, खोज ज्योति अखण्ड ।
नहीं खोजेगा तो पायेगा , जन्म-मृत्यु का दण्ड ।।

त्यागें त्यागन नीका, पायें ज्योति अखण्ड ।
काम क्रोध लोभ मोह त्यागें, त्यागें घमण्ड ।।

                                       - ( इकोभलो )

* रचना तिथि : ०३-०१-२००१ , संपादन तिथि : २१-०७-२०१७ 
                          

आमिल कामिल फ़कीर... Amil kamil faqeer...

                      फ़क़ीरों को नये नये खेल सूझते रहते हैं । एकबार एक आला दर्ज़े के  फ़क़ीर अपने एक मुरीद यानिकि शिष्य को लेकर जगह जगह तमाशा करने का खेल करने की मौज़ में थे । वे तमाशा करने वाले मदारी की तरह डमरू बजाकर भीड़ इक्कठी करते और इक्कठी भीड़ को तमाशा तो न दिखाते लेकिन भाषन अपनी भाषा में ज़रूर सुनाते । जमूरे से बात करने के बहाने ही वे रूहानी-भाषन करते थे और करवाते थे । एकबार डमरू बजाने के बाद भीड़ इक्कठी होने पर :-

डमरू वाला  फ़कीर ->  ओ जमूरे बाला ।
जमूरा बाला ->  जी हुज़ूरे आला ।
फ़कीर -> तुझे मैं जमूरा क्यों कहता हूँ बता ज़रा ।
जमूरा -> क्योंकि मैं जमता मरता हूँ , माया के उरे हूँ ।
फ़कीर -> और मैं , क्या मैं मरता नहीं , माया के उरे नहीं हूँ ?
जमूरा -> नहीं हुज़ूर आप तो जीते जी मर कर सदा की ज़िन्दगी पा चुके हैं , माया के परे जा पहुँचे                             हैं , आप पहुँचे हुए फ़कीर हैं ।
फ़कीर -> आमिल कामिल फ़कीर क्या ?
जमूरा -> हाँ हुज़ूर ।
फ़कीर -> सिफली आमिल क्या ?
जमूरा -> नहीं हुज़ूर सिफली आमिल फ़कीर तो माया के उरे में ही जीते हैं , उनका अमल सिफली                           इल्म का होता है , आप तो उलवी-इल्म के जानकार हैं और इस इल्म के अमल में माहिर                          सच्चे बादशाह हैं ।
फ़कीर -> सच्चा बादशाह ! फिर क्यों हो रहा है ये तमाशा ?
जमूरा -> क्योंकि तमाशा देखने वाले भी सभी जमूरे हैं , आप हुज़ूर मुझे जम से छुड़ाएंगे पार                                लगाएंगे ,  इन्हें भी परे  पहुंचाने आये हैं ।
फ़कीर -> तो बता दे जमूरे इन जमूरों को कि ईलाही कलमा ले लो पार होना है तो , मतलब बैअत                        होकर मुरीद बन जाओ किसी कामिल आमिल मुर्शिद के , कामिल फ़क़ीर के ।
जमूरा -> सुनो सुनो सब जमूरे भाई -बहनों और बुज़ुर्गो , रूहानी कलमा ले लो पार होना है तो ,                             बैअत यानि दीक्षित होकर मुरीद बन जाओ जमों से छुटना है तो । सुनो सुनो..... । 

                                                                                                     - ( इकोभलो )


* रचना तिथि : २००१ , संपादन तिथि : २१-०७-२०१७  

Wednesday, July 19, 2017

बोलू धन धन धन परम सतगुरू... Bolu dhan dhan dhan Param Satguru...


ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः

बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।
श्री-स्वामी धन श्री परम सतगुरू ।। - ( टेक )


तुमरे नाम का सुमिरन रोज़ करूँ ।
सुमिरन ना हो तो नारा ही उच्चारूँ ।।
बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।।।
तेरा ही आसरा है परम सतगुरू ।।।।


बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।
श्री-स्वामी धन श्री परम सतगुरू ।।


मैं ना प्रभू तुमरी आरती उतार सकूँ ।
क्योंकि तुम निर-आरत मैं आरत हूँ ।।
मैं आरत क्या आरती उतारूँ या हरूँ ।।।
तूं सर्वस्य आरती हरे परम सतगुरू ।।।।


बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।
श्री-स्वामी धन श्री परम सतगुरू ।।


मन क्षर है, मैं दूषित मनुष्य हूँ ।
क्षर-दूषन के परे निकलना चाहूँ ।।
मन जीतूँ या ये मन-हरे सतगुरू ।।।
सर्वस्य मनो हरे तूं परम सतगुरू ।।।।


बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।
श्री-स्वामी धन श्री परम सतगुरू ।।


                              - (
इकोभलो )

Monday, July 17, 2017

काल, माया, तन, मन, सन, धन के अर्थ :- Meaning of Kaal, Maya, Tan, Man, San, Dhan, Jan, Gan, Ran

काल... माया को कहते हैं ।

माया... पँचतत्वों को कहते हैं ।


तन... स्थूल-तत्वों को कहते हैं ।


मन
... सूक्ष्म-तत्वों को कहते हैं ।


सन
... जीव-आत्मा को कहते हैं ।


धन
... निरन्कार-परमात्मा को कहते हैं ।


जन
... जनता को, प्रजा को कहते हैं ।


गन
... देवता को, सुर को कहते हैं ।


रन
... युद्ध को, रण को कहते हैं ।


                        - ( इकोभलो )

Saut-A-Aasmaan ( Sout Aasmaani )... सौत-ऐ-आसमानी

सुन लिया है जिसने प्यारा एक सौत । पार किया है उसी ने दायरा ऐ मौत ।।
सुनना चाहता वो जिसे ख़ौफ़ ऐ मौत । असर ऐ ख़ौफ़ से होता शौक़ ऐ सौत ।। 
                                             - ( इकोभलो ) 

Sunday, July 16, 2017

* Yo Brahum ka anda khopdi sae ik jhopdi... यो ब्रह्म का अण्डा खोपड़ी सै इक झोपड़ी

यो ब्रह्म का अण्डा खोपड़ी सै इक झोपड़ी ।
झोपड़ी के रहणिया के धोरे माल करोड़ी ।।
करोड़ी माल फिर भी कँगाल आँखे रो पड़ी ।
झल्ला सर पै भारी उठाये ढोहवै टोकरी ।।
माल ख़ज़ाना गुपत छुपत सै माँगै फिरै सै नौकरी ।
माल ढून्ढ  कै मालिक बन देता रह फिर  नौकरी ।।
सुन लो माई-बापू बच्चे छौकरा और छौकरी ।
माल ढूँढ के मालिक बनो सब इसे नोट करी ।


                                       
                                          - ( इकोभलो ) 

       
*  रचना तिथि : १२-०१-२००१,  संपादन तिथि : १६-०७-२०१७   

Wednesday, July 12, 2017

* एैसा इन्साँ वाले कहते हैं... ( Aisa Insaan waley kehtey hain )

ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः
सीधा-साधा ही साधू है, और बिगड़ा हुआ तो है शैतान ।
साधू और शैतान के जीने का आधार इक श्री भगवान ।।


सर्वभक्ति एवं ग्यान से सम्पन्न इक ही है और न दूजा कोई ।
सर्वस्य-आधार जो आप निर्आधार है, भगवान कहावे सोई ।।


भ से भक्ति या प्रेम, ग से ग्यान सम्पन्न प्रकाशवान-भगवान ।
प्रेम-प्रकाश ही कमाते कोस्मोपोलिटन-सर्वदेशी भक्त-इन्सान ।।


इन्साँ कोस्मोपोलिटन भक्त लोक उन लोगों को कहते हैं ।
जो पूरे विश्व को एक कुटुम्ब-परिवार समझकर रहते हैं ।।


"वसुधैव कुटुमबकम्" पुरानी-उक्ति को चरित्रार्थ करते हैं ।
"मानुख की जात एको पहचानते हैं" का दम भरते हैं ।।


सन्त उनको कहते हैं जो शान्ति पा गये सन्तुष्टि में रहते हैं ।
पहले इन्सान बनो फिर साधू-सन्त एैसा इन्साँ वाले कहते हैं ।।


                                               
- (इकोभलो)


* रचना तिथि : ००-००-२००१, संपादन तिथि : १२-०७-२०१७  

Monday, July 10, 2017

* Sacha Suvaad... " सच्चा सुवाद "

 ^ 
।। सच्चा सुवाद आँखों तक मिलता नहीं । मिले पार मुखड़े के किन्तु भीतर ही ।।
।। कूड़ कामना छोड़ बन सच्चा कामी । सच्चा नाम सिमर ढूँढ सच्चा नामी ।।
।।
।। कूड़ काम पिपासु सुवाद लेता कौड़े । कामणि के लिंग  सँग लिंग को जोड़े ।।
।। सच्चा मीठा पा ले जो इन्द्रियाँ छोड़े । और सुरत को शब्द के  सँग जोड़े ।।
।।
।। असल में तन को सुवाद आता नहीं । सुवाद-सरूप सुरत को सुवाद आता सही ।।
।। सुरत तन छोड़े तो जड़ तन भाता नहीं । बिना-सुवाद कभी सुवाद  आता  नहीं ।।
।।
।।                                                                                       - ( इकोभलो )
।।
।।
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!__!_

* रचना तिथि : २६-१०-१९९८ , संपादन तिथि :  १०-०७-२०१७ 

Saturday, July 8, 2017

* Satguru Nu Tu Simar man mere ... ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ...

ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ

                     ਸਤਗੁਰੂ  ਨੂੰ ਤੂ ਸਦਾ ਮੰਨ  ਨੇੜੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                       ਚੌਰਾਸੀ  ਲੱਖ ਦੇ ਮੁਕਾ ਲੈ ਗੇੜੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                    ਚੌਰਾਸੀ ਭੋਗਦੇ ਯੁੱਗ ਬੀਤੇ ਬਥੇਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                 ਸਿਮਰਨ ਤੋਂ ਕਰਮਾਂ ਦੇ ਹੋਣੇ ਨਿਬੇੜੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                    ਧੰਨ ਹਨ ਸਤਗੁਰੂ  ਸਾਹਿਬ ਮੇਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                     ਮਨ ਨੂੰ ਸੌਂਪ ਸਤਗੁਰੂ ਦੇ ਅਗੇਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
             ਬੈਠਕ ਕਰ ਸਿਮਰਨ ਦੀ ਹਨੇਰੇ ਸਵੇਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                   ਸਤਸੰਗ ਅਤੇ ਸਿਮਰਨ ਧੰਨ ਤੇਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                ਨਿਕਲ ਤਿਰੀ ਗ਼ਮ ਪੁਰੀਆਂ ਤੋਂ ਪਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                ਅੱਪੜ ਆਪਣੇ ਸਤਲੋਕ ਬੇਗਮ ਪੁਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।

                                           - ( ਕੁਲਦੀਪ ਸਿੰਘ  'ਇਕੋਭਲੋ ' )

*  ਰਚਨਾ  ਤਰੀਖ : 06-03-2001     

Friday, July 7, 2017

* Boojho to maaney Boojhakkad Laal बूझो तो माने... बूझक्कड़ लाल !

एक दिन लालाजी और लालबुझक्कड़ की हुई दिमागी टक्कर !
लाला जी ने सवाल पूछा, तुरन्त  सोचने लगा लालबुझक्कड़ !!
सवाल था लाल कितने हैं, बूझो तो माने बूझक्कड़ लाल
तुम बूझ लोगे तब  ही तुम्हें मानूँगा, ग़ज़ब इंसान-ए-कमाल !!
दिमाग़ मे तोला, फिर बूझक्कड़ बोला . . .  एक है प्यारे लाल !
दूसरा प्रेम लाल, और तीसरा व चौथा, अनोखे व न्यारे लाल !!
पाँचवाँ मुंगेरी लाल, और छठा व सातवाँ, नौरंगी व पन्ना लाल !
आठवाँ भजन लाल, और नौवाँ व दसवाँ, मोती व मुन्ना लाल !!
ग्यारहवाँ राम लाल, और बारहवां व तेरहवाँ, हज़ारी व सोहन लाल !
चौदहवाँ हीरा लाल, और पंद्रहवाँ व सोलहवां, रतन व मोहन लाल !!
सत्रहवाँ सुन्दर लाल, और अठारहवाँ व उन्नीसवाँ, कीमती व जवाहर लाल !
बीसवां बंसी लाल, इक्कीसवाँ व बाईसवाँ, अमृत व मनोहर लाल !!
इतने सारे लालों को , बूझ चुका जब, लालबुझक्कड़ बूझक्कड़ लाल !
तब लालाजी कह उठे, लालबुझक्कड़ बूझक्कड़ लाल, तू है कमाल !!


                                                                     - ( इकोभलो )


* रचना तिथि  : 13-06-2006, संपादन तिथि : १०-०७-२०१७ 

Saturday, July 1, 2017

* Trilokee me rehnaa hee bekaaraa hai " त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है " (Bhajan/Shabda/Geet)

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

इस त्रिलोकी में नहीं है रहना ।  

मानो सन्त सतगुरु का कहना । 

यहां दुःख के  सिवाए कुछ ना ।

कुछ दिन  ही मोर ने नचना ।
  
त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

खुशियाँ है यहाँ बहुत ही थोड़ी ।

 मौत हुई रोते हैं ज़ोरम ज़ोरी ।

मौत ने छीनी जो माया जोड़ी ।

दुःख बहुत पाया आयु थोड़ी ।

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

कुलदीप दुखिया सब संसार । 

काल की पड़ती सबको मार ।

अब तो ज़रा मन में विचार ।

आर रहना कि रहना है पार ।

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

चौथा लोक है तीन से न्यारा ।

सतगुरु ने ये वचन उचारा ।

उसी लोक  में करो गुज़ारा ।

जो सुवर्ग से सुन्दर प्यारा ।

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

सत देश में हमको है जाना ।

तत जगत मुसाफ़िर खाना ।

सत्संगत में रहो भाई बहना ।

मानो सन्तसत्गुरु का कहना । 

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

                           - (कुलदीप सिंह इकोभलो)
 *  रचना तिथि  : १७-०२-२००१, प्रकाशन तिथि : ०१-०७-२०१७  

* Nanak ' NAAM ' jahaaz hai "नानक नाम जहाज़ है चढ़े सो उतरे पार"

_'मत'_ ... यूं तो अनेकों मत हैं लेकिन यदि इन्हें दो हिस्सों में बाँटें तो एक है 'गुरूमत', और दूसरी इसके बिल्कुल विपरीत प्रकार की मत है 'रूगुमत' ।
_'गुरूमत'_ ... यानि कि उजलि-मत, पाक-रूह की एैसी गौरी उजलि-मत जो कि मैली-मत को हरि के खा जाती है और पचाइके उजलि-मत मेंं रूपान्तरित कर देती है ।
इस रूपान्तरण के साथ ही किसी रोज़ अधिआत्मायें या कैद-रूहें निज़ात-(मुक्ति) को भी पा जाती हैं, यानिकि रूहें इस उजलि-मत-(गौरी-नफ़्स) की 'सोहबत-ओ-मदद' से जिस्म की कैद से छुटकारा भी पा जाती हैं । गुरूमत का सार 'नाम' है, लेकिन किरतम-(कृत्रिम्) नाम नहीं सच-(सत) नाम ही  सार है । और ये स्थूल तत्वों के 'परम्परा एवम् पूर्वला' है । इसलिये ही नाम को जहाज़ कहा जाता है, ये हमें पार उतार देता है, और जिनका 'पार-उतारा' हो गया वे ही परम-सन्त हैं । 'श्री गुरूग्रँथ साहिब' की बाणी कहती है : "नानक नाम जहाज़ है चढ़े सो उतरे पार" ।


                     _'मत'_ को मुख्य-इन्द्रि 'मन' भी कहते हैं... सुन्दर-मन को 'सुमन' भी कहते हैं । इस सुमन का सँग-(साथ) एवम् सहायता पाकर हम छोटे-चेतन (अधिआत्मायें,पँच-तत्वों के अधीन चेतनायें) जब 'नाम-ध्यान' में श्रम करते हैं तो हम उजलिमत-(सुमन) वाली आत्मायें तन के बँधन (जिस्मानी कैद) से छुट जाती हैं । 'श्री गुरूग्रँथ साहिब' की बाणी कहती है :- "जिनि नाम धियाया गये मसकति घाल । नानक ते मुख उजले केति छुटि नाल ।।"
                                                                                                                  - ( इकोभलो )


* रचना तिथि : वर्ष २००१ , संपादन तिथि : ०१ -०७ -२०१७ , प्रकाशन तिथि : ०१-०७-२०१७ 

Monday, November 17, 2014

Who is a Braahman ? and Who is a Sikh ?

मूण्ड मुण्डाने से कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता...
... 'ब्राह्मण' सो जो ब्रह्म पहचाने । बाहर जाता भीतर आने ।। 
उसे तरहाँ केश वद्धाण नाल कोई सिक्ख नहीं हो जाँदा... 
...जो कोई वी गुरूआँ पीरां फ़कीराँ दी सिख्या ( शिक्षा ) नूँ अमल (प्रयोग) विच लै आँदा है ओह 'सिक्ख' है... 
...गुरूआँ ने कहेया है माँस-शराब नहीं खावणा-पीवणा... सान्नू इस ते अमल करना चाहिदा है ।
                                                                                                   
                                                        - ( इकोभलो  Icobhalo )


 Kaun BRAHMAN ?

 Kaun SIKH ?

Thursday, November 7, 2013

BOOJHO TO.. KYAA HAI SOUT-O-CHIRAAG DILLEE ?












सारे जहान को रोशन करता है एक चिराग !

चिराग दिल में है वो दिल है दिले-दिमाग !!

चिराग में गैबी सौत है सौत हयात का आब !

आब बनाता बन्दे को आज़ाद मस्ताना साहब !!

                                    - ( ICoBhaLo )

Monday, October 21, 2013

इन्साँ कॉस्मोपोलिटन भक्त लोक नामक पेज...

Note : पाठकगणों मेरा फेसबुक पर एक पेज है... 
... Insaan Cosmopolitan Bhakta Lok 
(इन्साँ कॉस्मोपोलिटन भक्त लोक)... 
...कृप्या इसे भी देखें ।
...इस पेज का पता है :- www.facebook.com/icobhalo

                    
                                  - ( Blogger : Kuldeep Singh ICoBhaLo ) )

Sunday, June 9, 2013

Mai na sher banunga na hi siyar banunga ...मैं ना शेर बनूँगा, ना ही सियार बनूँगा ! (नग़मा)

 _____________________________
मैं ना शेर बनूँगा, ना ही सियार बनूँगा ।
इन्सान की औलाद हूँ, इन्सान ही रहूँगा ।।

..
इन्सान हूँ इन्सान कहूँगा, ना कि भगवान ।
ना मैं रहमान, और ना ही शैतान कहूँगा ।।
इन्सानियत की ख़ातिर सभी ठोकरें सहूँगा ।।।
इन्सान की औलाद हूँ, इन्सान ही रहूँगा ।।।।

..
मैं ना शेर बनूँगा, ना ही सियार बनूँगा ।
इन्सान की औलाद हूँ, इन्सान ही रहूँगा ।।

..
ठुकराओ मुझको, तभी तो मैं 'सुर्खरू' होऊँगा ।
ठुकराने वालों को, इक शायर का शेअर बोलूँगा ।।
कि 'सुर्ख़रू' होता है इन्साँ, ठोकरे खाने के बाद ।।।
रँग लाती है हिना, पत्थर पे घिस जाने के बाद ।।।।

..
मैं ना शेर बनूँगा, ना ही सियार बनूँगा ।
इन्सान की औलाद हूँ, इन्सान ही रहूँगा ।।

..
खुद में संकीर्णता की सभी दीवारे ढ़ाऊँगा ।
हदों को हटा के, सभी को अपना कहूँगा ।।
सीमाओं को मिटाकर कोस्मोपोलिटन बनूँगा ।।।
छाती तानकर नहीं दिल बड़ा करके तनूँगा ।।।।

..
मैं ना शेर बनूँगा, ना ही सियार बनूँगा ।
इन्सान की औलाद हूँ, इन्सान ही रहूँगा ।।

..
ना पँजाब केसरी, ना ही शेरे-पँजाब बनूँगा ।
ना शेरे उत्तर-प्रदेश, हरियाणा दिल्ली कहूँगा ।।
इन्साने-अल्लाह हूँ, इन्साने-अल्लाह रहूँगा ।।।
नर नारायण का हूँ खुद को शेर नहीं कहूँगा ।।।।

..
मैं ना शेर बनूँगा, ना ही सियार बनूँगा ।
इन्सान की औलाद हूँ, इन्सान ही रहूँगा ।।

                                      
      
                                          - ( इकोभलो )
                               - ICoBhaLo )

Thursday, April 11, 2013

JEEVAN MRITYU AVAM JANMA... जीवन मर्त्यु एवम जन्म :-

जीवन व मर्त्यु के अतिरिक्त एक तीसरा शब्द है जन्म ।

जीवन जब मिर्त्यु (5-तत्व) में आता उसे जन्म कहते है ।                                                                     


                                  

                                             ~ इकोभलो ~

एक-सत्व ज़िन्दगी पँच-तत्व मौत...

1-SATVA ZINDAGI 5-TATVA MOUT :-

जगत 5-तत्व है, जीवन 1-सत्व है... जगत में जीवन है (अन्जन माहि निर-अन्जन रहियै) किन्तु जीवन में कुछ नहीं, सब जीवन के उपर ही है । जगत सुख-दुख है, जीवन आनन्द है ।
दोस्तों.. 1-सत् जिन्दगी है और 5-तत् मौत ।
हम मौत के पन्जे में आते हैं तो रोते हैं बहोत ।।

जिन्दगी का असली मज़ा मौत से मुक्ति के बाद ही आता है ।
मोक्ष भी मुक्ति के साथ परछाई की तरह साथ ही रहता है ।।
~इकोभलो~

Regards : Insaan Cosmopolitan Bhakta Lok

Friday, October 7, 2011

RAAM-BRAHUM:-

पाठकों अब  मैं  हिन्दी में ही लिखूंगा…  

RAAM ki paribhasha hai: Rametaa so RAAM , aur haan pretaa so PARAM hota hai. 

Jo Brahum ka ansh Rajsik-maayaa me rama hai vo Rajsik-Raam ya Maharaja-Brahmaa kehlaataa hai (english me G for Generator-Brahmaa)... 

aur jo Brahum ka ansh Satvik maayaa me rama hai usey Satvik-Raam ya Mahasatta-Vishnu kehte hain (english me O for Operator-Vishnu)...

 aur jo Brahum ka ansh Tamsik-maayaa me rama hai usse Mahatama-Shiv kehte hain (english me D for Destroyer-Shiv). 

Sanyukta roop me teeno Rameshvaron (Tri-Devo) ko english me GOD kehte hain.

 

Paathako... ab mai hindi me hee likhungaa kyonki meri english bhasha abhi itnee achhi nahee hai ki mai apni baat sapasht roop se keh sakoon. ... To maine kahaa tha ki agli post me mai RAAM-BRAHUM ke baarey me bataaungaa. RAAM ki paribhasha hai: Rametaa so RAAM , aur haan pretaa so PARAM hota hai. Jo Brahum ka ansh Rajsik-maayaa me rama hai vo Rajsik-Raam ya Maharaja-Brahmaa kehlaataa hai english me G for Generator-Brahmaa aur jo Brahum ka ansh Satvik maayaa me rama hai usse Satvik-Raam ya Mahasatta-Vishnu kehte hain english me O for Operator-Vishnu aur jo Brahum ka ansh Tamsik-maayaa me rama hai usse Mahatama-Shiv kehte hain english me D for Destroyerator-Shiv. Sanyukta roop me teeno Rameshvaron ko english me GOD kehte hain.

Wednesday, June 1, 2011

PARAM-BRAHUM

In the begining was word and before begining was PARAM-BRAHUM. The Param-Brahum is a supreme soul, eternal soul. No one is the creater or borner of the Param-Brahum. Param-Brahum is in the form of soul. So... we can't say to Param-Brahum as he or she because... Soul or spirit is like the current, we can't say to current as he or she. All upper class sants or saints were devotees of supreme soul or the Param-Brahum. Here noteworthy is that ... when we touch to the current, it shock us but... when we touch to the Supreme-soul or Param-Brahum, he or she or pneuma give us feelings of ecstacy, love, calmness etc.Param-Brahum is vary of the GOD. The GOD are situations, I mean situations of a part of the Param-Brahum in the MAYA or panchtatva or 5-matters, called GOD. Let me clear more... the GOD are situations of a part of the Param-Brahum and the MAYA are transformations of a part of the Param-Brahum. Yet I tell you that GOD are parts of Param-Brahum and MAYA are parts of Param-Brahum also, here notable is that... MAYA are in the form of transformated form but GOD are in the form of soul like the form of Param-Brahum as the form of soul.Dear readers in the next blog post, I'll tell you about RAAM-BRAHUM or the GOD.

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_________________________________________________ ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।  (टेक)   नारी के पीछे  मन  लगे , गुरू...