श्रीदेवों महात्माओँ और संतों ने, प्रेम को बहुत गाया ।
कलगीधर कह गए जिन प्रेम किया तिन प्रभु पाया ।।
सन्त कबीर कह गए, प्रेम के पढ़े से पण्डित होते हैं ।
श्रेष्ट कर्म प्रेम कीजिये, हम वही पाते हैं जो बोते हैं ।।
प्रेम में ऐसा बल है, कि पत्थर को मोम कर दे ।
ईर्षालु को ये लाल प्रेम जी, श्री प्रेमी में बदल दे ।।
पिछड़े हुए पीवें जो प्रेम रस, हो जाएँ वो आगे ।
जो पीने लग जाएँ ये सुरस, उनके भाग जागे ।।
जिसने प्रेम प्याला पीया, उसने जन्म सफल कीया ।
उसे माया से वैराग उपजा, भाया प्रीतम प्यारा पीया ।।
- ( कुलदीप सिंह 'इकोभलो' )
* रचना तिथि : २१-०४-२००७ , सम्पादन तिथि : २७-०७-२०१७
कलगीधर कह गए जिन प्रेम किया तिन प्रभु पाया ।।
सन्त कबीर कह गए, प्रेम के पढ़े से पण्डित होते हैं ।
श्रेष्ट कर्म प्रेम कीजिये, हम वही पाते हैं जो बोते हैं ।।
प्रेम में ऐसा बल है, कि पत्थर को मोम कर दे ।
ईर्षालु को ये लाल प्रेम जी, श्री प्रेमी में बदल दे ।।
पिछड़े हुए पीवें जो प्रेम रस, हो जाएँ वो आगे ।
जो पीने लग जाएँ ये सुरस, उनके भाग जागे ।।
जिसने प्रेम प्याला पीया, उसने जन्म सफल कीया ।
उसे माया से वैराग उपजा, भाया प्रीतम प्यारा पीया ।।
- ( कुलदीप सिंह 'इकोभलो' )
* रचना तिथि : २१-०४-२००७ , सम्पादन तिथि : २७-०७-२०१७
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