_'मत'_ ... यूं तो अनेकों मत हैं लेकिन यदि इन्हें दो हिस्सों में बाँटें तो एक है 'गुरूमत', और दूसरी इसके बिल्कुल विपरीत प्रकार की मत है 'रूगुमत' ।
_'गुरूमत'_ ... यानि कि उजलि-मत, पाक-रूह की एैसी गौरी उजलि-मत जो कि मैली-मत को हरि के खा जाती है और पचाइके उजलि-मत मेंं रूपान्तरित कर देती है ।
इस रूपान्तरण के साथ ही किसी रोज़ अधिआत्मायें या कैद-रूहें निज़ात-(मुक्ति) को भी पा जाती हैं, यानिकि रूहें इस उजलि-मत-(गौरी-नफ़्स) की 'सोहबत-ओ-मदद' से जिस्म की कैद से छुटकारा भी पा जाती हैं । गुरूमत का सार 'नाम' है, लेकिन किरतम-(कृत्रिम्) नाम नहीं सच-(सत) नाम ही सार है । और ये स्थूल तत्वों के 'परम्परा एवम् पूर्वला' है । इसलिये ही नाम को जहाज़ कहा जाता है, ये हमें पार उतार देता है, और जिनका 'पार-उतारा' हो गया वे ही परम-सन्त हैं । 'श्री गुरूग्रँथ साहिब' की बाणी कहती है : "नानक नाम जहाज़ है चढ़े सो उतरे पार" ।
_'मत'_ को मुख्य-इन्द्रि 'मन' भी कहते हैं... सुन्दर-मन को 'सुमन' भी कहते हैं । इस सुमन का सँग-(साथ) एवम् सहायता पाकर हम छोटे-चेतन (अधिआत्मायें,पँच-तत्वों के अधीन चेतनायें) जब 'नाम-ध्यान' में श्रम करते हैं तो हम उजलिमत-(सुमन) वाली आत्मायें तन के बँधन (जिस्मानी कैद) से छुट जाती हैं । 'श्री गुरूग्रँथ साहिब' की बाणी कहती है :- "जिनि नाम धियाया गये मसकति घाल । नानक ते मुख उजले केति छुटि नाल ।।"
- ( इकोभलो )
_'गुरूमत'_ ... यानि कि उजलि-मत, पाक-रूह की एैसी गौरी उजलि-मत जो कि मैली-मत को हरि के खा जाती है और पचाइके उजलि-मत मेंं रूपान्तरित कर देती है ।
इस रूपान्तरण के साथ ही किसी रोज़ अधिआत्मायें या कैद-रूहें निज़ात-(मुक्ति) को भी पा जाती हैं, यानिकि रूहें इस उजलि-मत-(गौरी-नफ़्स) की 'सोहबत-ओ-मदद' से जिस्म की कैद से छुटकारा भी पा जाती हैं । गुरूमत का सार 'नाम' है, लेकिन किरतम-(कृत्रिम्) नाम नहीं सच-(सत) नाम ही सार है । और ये स्थूल तत्वों के 'परम्परा एवम् पूर्वला' है । इसलिये ही नाम को जहाज़ कहा जाता है, ये हमें पार उतार देता है, और जिनका 'पार-उतारा' हो गया वे ही परम-सन्त हैं । 'श्री गुरूग्रँथ साहिब' की बाणी कहती है : "नानक नाम जहाज़ है चढ़े सो उतरे पार" ।
_'मत'_ को मुख्य-इन्द्रि 'मन' भी कहते हैं... सुन्दर-मन को 'सुमन' भी कहते हैं । इस सुमन का सँग-(साथ) एवम् सहायता पाकर हम छोटे-चेतन (अधिआत्मायें,पँच-तत्वों के अधीन चेतनायें) जब 'नाम-ध्यान' में श्रम करते हैं तो हम उजलिमत-(सुमन) वाली आत्मायें तन के बँधन (जिस्मानी कैद) से छुट जाती हैं । 'श्री गुरूग्रँथ साहिब' की बाणी कहती है :- "जिनि नाम धियाया गये मसकति घाल । नानक ते मुख उजले केति छुटि नाल ।।"
- ( इकोभलो )
* रचना तिथि : वर्ष २००१ , संपादन तिथि : ०१ -०७ -२०१७ , प्रकाशन तिथि : ०१-०७-२०१७
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