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Sunday, August 6, 2017

* ऐेे इन्सान मन को मार... Ai Insaan man ko maar

 ऐेे इन्सान मन को मार, क्योंकि तूं है प्राणियों में सरदार ।
मनजीतै तो तू जगजीत, छोड़ दे मनप्रीत होजा ख़बरदार ।।
मन को अपने अधीन करना,  समझो आँधी को रोकने जैसा ।
कोई सु में रत सुरत सूरवीर बीर  ही, कर सकता है कुछ ऐेैसा ।।
ये सुरत चलाते सुमिरन-रुपी गोली, तो मन मर जाता इस से ।
अभ्यास द्वारा कुछ भी असंभव नहीं है, तो कैसे बचेगा मन ये ।।
वीरवान-सुरत को करना चाहे काबू, दुष्ट मन के पँजे का जादू ।
पर ये  सुरत, शब्द-अभ्यास द्वारा मन को ही कर लेता है काबू ।। 
                                    
                                       - ( कुलदीप सिंह 'इकोभलो' )
* रचना तिथि : २००३                    

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