फ़क़ीरों को नये नये खेल सूझते रहते हैं । एकबार एक आला दर्ज़े के फ़क़ीर अपने एक मुरीद यानिकि शिष्य को लेकर जगह जगह तमाशा करने का खेल करने की मौज़ में थे । वे तमाशा करने वाले मदारी की तरह डमरू बजाकर भीड़ इक्कठी करते और इक्कठी भीड़ को तमाशा तो न दिखाते लेकिन भाषन अपनी भाषा में ज़रूर सुनाते । जमूरे से बात करने के बहाने ही वे रूहानी-भाषन करते थे और करवाते थे । एकबार डमरू बजाने के बाद भीड़ इक्कठी होने पर :-
डमरू वाला फ़कीर -> ओ जमूरे बाला ।
जमूरा बाला -> जी हुज़ूरे आला ।
फ़कीर -> तुझे मैं जमूरा क्यों कहता हूँ बता ज़रा ।
जमूरा -> क्योंकि मैं जमता मरता हूँ , माया के उरे हूँ ।
फ़कीर -> और मैं , क्या मैं मरता नहीं , माया के उरे नहीं हूँ ?
जमूरा -> नहीं हुज़ूर आप तो जीते जी मर कर सदा की ज़िन्दगी पा चुके हैं , माया के परे जा पहुँचे हैं , आप पहुँचे हुए फ़कीर हैं ।
फ़कीर -> आमिल कामिल फ़कीर क्या ?
जमूरा -> हाँ हुज़ूर ।
फ़कीर -> सिफली आमिल क्या ?
जमूरा -> नहीं हुज़ूर सिफली आमिल फ़कीर तो माया के उरे में ही जीते हैं , उनका अमल सिफली इल्म का होता है , आप तो उलवी-इल्म के जानकार हैं और इस इल्म के अमल में माहिर सच्चे बादशाह हैं ।
फ़कीर -> सच्चा बादशाह ! फिर क्यों हो रहा है ये तमाशा ?
जमूरा -> क्योंकि तमाशा देखने वाले भी सभी जमूरे हैं , आप हुज़ूर मुझे जम से छुड़ाएंगे पार लगाएंगे , इन्हें भी परे पहुंचाने आये हैं ।
फ़कीर -> तो बता दे जमूरे इन जमूरों को कि ईलाही कलमा ले लो पार होना है तो , मतलब बैअत होकर मुरीद बन जाओ किसी कामिल आमिल मुर्शिद के , कामिल फ़क़ीर के ।
जमूरा -> सुनो सुनो सब जमूरे भाई -बहनों और बुज़ुर्गो , रूहानी कलमा ले लो पार होना है तो , बैअत यानि दीक्षित होकर मुरीद बन जाओ जमों से छुटना है तो । सुनो सुनो..... ।
- ( इकोभलो )
* रचना तिथि : २००१ , संपादन तिथि : २१-०७-२०१७
डमरू वाला फ़कीर -> ओ जमूरे बाला ।
जमूरा बाला -> जी हुज़ूरे आला ।
फ़कीर -> तुझे मैं जमूरा क्यों कहता हूँ बता ज़रा ।
जमूरा -> क्योंकि मैं जमता मरता हूँ , माया के उरे हूँ ।
फ़कीर -> और मैं , क्या मैं मरता नहीं , माया के उरे नहीं हूँ ?
जमूरा -> नहीं हुज़ूर आप तो जीते जी मर कर सदा की ज़िन्दगी पा चुके हैं , माया के परे जा पहुँचे हैं , आप पहुँचे हुए फ़कीर हैं ।
फ़कीर -> आमिल कामिल फ़कीर क्या ?
जमूरा -> हाँ हुज़ूर ।
फ़कीर -> सिफली आमिल क्या ?
जमूरा -> नहीं हुज़ूर सिफली आमिल फ़कीर तो माया के उरे में ही जीते हैं , उनका अमल सिफली इल्म का होता है , आप तो उलवी-इल्म के जानकार हैं और इस इल्म के अमल में माहिर सच्चे बादशाह हैं ।
फ़कीर -> सच्चा बादशाह ! फिर क्यों हो रहा है ये तमाशा ?
जमूरा -> क्योंकि तमाशा देखने वाले भी सभी जमूरे हैं , आप हुज़ूर मुझे जम से छुड़ाएंगे पार लगाएंगे , इन्हें भी परे पहुंचाने आये हैं ।
फ़कीर -> तो बता दे जमूरे इन जमूरों को कि ईलाही कलमा ले लो पार होना है तो , मतलब बैअत होकर मुरीद बन जाओ किसी कामिल आमिल मुर्शिद के , कामिल फ़क़ीर के ।
जमूरा -> सुनो सुनो सब जमूरे भाई -बहनों और बुज़ुर्गो , रूहानी कलमा ले लो पार होना है तो , बैअत यानि दीक्षित होकर मुरीद बन जाओ जमों से छुटना है तो । सुनो सुनो..... ।
- ( इकोभलो )
* रचना तिथि : २००१ , संपादन तिथि : २१-०७-२०१७
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