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Monday, December 4, 2017

* ऐसा कलियुग आया रे... Aisa KALIYUG aaya re !

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ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।। (टेक)

 नारी के पीछे मन लगे , गुरू के लगने से घबराया रे ।
मीठा बिल्कुल ना भावे, कड़वा पापी मन को भाया रे ।।

ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।



नील कपड़ों को देने लगे, सुन्दर लाल   ना रंगाया रे ।
बाल काले करने लगे , देखो सफ़ेद से शरमाया रे ।।


ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।


निन्दा चुगलियाँ करता रहे, गुरू-चर्चा से कतराया रे ।
दूजों का भार उतारता फिरे, अपने सिर भार चढ़ाया रे ।।


ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।


बेडरूम में चप्पलें ना ले जाते, रसोई में ले जाया रे ।
बाहर से तो साफ़ रहते, भीतर माँस-शराब धराया रे ।।


ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।


बाहर भण्डारे करता रहे, घर में भूखी मरती माया रे ।
मननै सुधारन में ना लगे, सँवारती रहे सदा काया रे ।

 
ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।


हरि-भजन में मस्त ना होवे, नारी-भजन में मस्ताया रे ।
भजन-शबद ना भावे, नारी-भजने को डी.जे. बजवाया रे ।।


ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।


अन्त:करन की सुनने वालों ने ही, परम-पद को पाया रे ।
अन्तर-आत्मा की ना सुनने दे, पापी-मन ने भरमाया रे ।।


ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।


                                              - ( इकोभलो )


* रचना तिथि : 07 -नवम्बर -1999,  प्रकाशन तिथि : 04 -दिसम्बर -2017  

Sunday, August 13, 2017

* दोकड़ियाँ ... Dokadiyaan

(१) ढूँढो इल्मी आलिम नहीं, आमिल मुर्शिद को ।
     नौसिखिया फ़ाज़िल नहीं, कामिल मुर्शिद को ।।


(२) जो साहब आरिफ़ होते हैं उनकी मज़लिस में मैअ-ए-इरफ़ाँ बँटती है ।
     जो उनकी सोहबत करते और  कलमा पढ़ते उनकी मज़े में कटती है ।। 

(३) जो ताइब होते हैं वो तौबा कीया करते हैं ।
      बुराईयोँ को जल्द ही छोड़ दीया करते हैं ।।

(४) हक़-ता'अला वो  हक़ीक़त है, सच है, जो बोला नहीं जाता ।
      राज़-ए-हक़ मेहरे-मुर्शिद से खुलता है, खोला नहीं जाता ।।

(५) बहुत मुश्किल है बनना कमल-उल-गन्दगी ।
      ज़नाब चमन-ए-ग़ुलाब में गुज़ारो ये ज़िन्दगी ।।

(६) बहुत मुश्क़िल है बनना कीचड़ का कमल ।
     गुलाबी बाग़ में रह कर करो रूहानी अमल ।। 

(७) वक़्त पड़ने पर गधे को भी सर साब कहना पड़ता है ।
      तुम के तो लायक़ न हो, उसे भी आप कहना पड़ता है ।।
                               
                                                        - ( इकोभलो )

* रचना तिथि : १३-०६-२००६, संपादन तिथि : १३-०८-२०१७           
     

Friday, August 11, 2017

* प्रेम... Prem

प्रेम प्यार इश्क़ लव मुहब्बत । प्रेम भाव से होती सच्ची इबादत ।।

भक्ति-भाव के  बिन प्रभु पाया है किन । प्रेम-रूप हैं ईश्वर, नहीं हैं प्रेम से भिन्न ।।
प्रेम-भक्ति किये जाओ निश और दिन । प्रेम-जागृति हो उन हृदयों में जो प्रेमहीन ।।

प्रेम प्यार इश्क़ लव मुहब्बत । प्रेम भाव से होती सच्ची इबादत ।।

प्रेम की बँसी, प्रेम की वीणा, प्रेम की बीन । प्रेम से भरा हो आसमां और ये ज़मीन ।।
नीली छतरी देने वाले, हमें छतरी दो नवीन । हे प्रभु आसमाँ लाल करो, हरी हो ज़मीन ।।

प्रेम प्यार इश्क़ लव मुहब्बत । प्रेम भाव से होती सच्ची इबादत ।।

नीली छतरी से ऊब गए, मिले छतरी लाल । हरयाली पर लाली हो, सागर, गगनछत लाल ।।
क्योंकि नीला नहीं, प्रेम का रँग होता है लाल । हृदय परिवर्तन से ही होगा ये जादू कमाल ।।

प्रेम प्यार इश्क़ लव मुहब्बत । प्रेम भाव से होती सच्ची इबादत ।।

                                                                             - ( इकोभलो )

* रचना तिथि : २००५, संपादन तिथि : ११-०८-२०१७                        

Tuesday, August 8, 2017

Boojho to kya hai SAUT_O_CHIRAAG Dillee... Boojha to wah wah hai nahin to udegi khillee...



सारे जहां को रोशन करता है एक चिराग ।
चिराग दिल में है वो दिल है दिल-ऐ-दिमाग ।।
चिराग में गैबी सौत है सौत हयात का आब ।
आब बनाता बन्दे को आज़ाद मस्ताना साब ।।



                                          saare jahaan ko roshan karata hai ek chiraag .
                                          chiraag dil mein hai vo dil hai dil-ai-dimaag ..
                                          chiraag mein gaibee saut hai saut hayaat ka aab .
                                                                  aab banaata bande ko aazaad mastaana saab .. 
                                    
                                                                                                         - ( Icobhalo )
    

Monday, August 7, 2017

* कामिनी मतलब कमीनी... Kamini mean fuccker

                   आज के यानि कि कलियुग के काल में यदि किसी लड़की अथवा महिला को 'कामिनी' यानि कि 'सेक्सी' कह दिया जाये तो वह आमतौर पर बुरा नहीं मानती बल्कि प्रसन्न होती है ! जबकि यह संबोधन पूर्व के युगों में गाली समझा जाता था । दीर्घ-कालान्तर पश्चात् ये संबोधन 'कमीनी' में परिवर्तित हो गया है । अब भी सुना व देखा जाता है ज़िंदगी में या फिल्मों में कि यदि कोई लड़की किसी लड़के के साथ मुँह काला कर आती है तो उसकी माँ कहती है :- "कहाँ से मुँह काला कर आई कमीनी-कुत्तिया ?" । यह कमीनी-कुत्तिया वास्तव में कामिनी-कुत्तिया का ही परिवर्तित या विकृत संबोधन है ।
                  कामिनी-कुत्तिया का अर्थ है 'इरोटिक-बिच' (Erotic-bitch) 'होट-बिच' (hot-bitch) यानि कि 'गर्म-कुत्तिया' जोकि 'हॉट-डोग' (Hot-dog) की तलाश में रहती है । इनसे प्रेरित 'हॉट एंड सेक्सी' लोग पश्चिमी-देशों में ज़्यादा हैं, वैसे भारत में दो हॉट-एंड-सेक्सी व्यक्ति बड़े मशहूर हुए हैं जिन्हें आप भली-भाँति न्यूज़-मीडिया के ज़रिये जान चुके हैं... जी हाँ मोनिंदर और उसका नौकर सुरेन्दर उर्फ़ सतीश नोएडा के निठारी इलाके में रहने वाले दो असुर । वैसे पश्चिमी देशों में हॉट-एंड-सेक्सी लोग ज़्यादा हैं, वहां के एक फ़ास्ट-फ़ूड का नाम भी उन्होंने हॉट-डोग रखा है । भारत में भी यह फ़ास्ट-फ़ूड  'होट-डोग'  के नाम से ही उपलब्ध है । लेकिन फिर भी ख़ैर है भारत की इस कारण से कि भारत के कल्चर का जो बेस है, भारत की संस्कृति का जो आधार है वह "स्वीट-एंड-स्पिरिचुअल" (Sweet-and-spiritual) है ... वह "सौम्य-एवं-अध्यात्मिक" है । इसी आधार के कारण से ही भारत विश्व में के सभी देशों से अधिक प्रिय है मुझे । अन्तः मैं कहना चाहता हूँ "सारे जहाँ से अच्छा भारत हमारा है, भारत देश सब देशों से न्यारा है" । 
                                                                                                         - ( इकोभलो )
* रचना तिथि : १२-०२-२००७ , संपादन तिथि : ०७-०८-२०१७                                          

Sunday, August 6, 2017

* ऐेे इन्सान मन को मार... Ai Insaan man ko maar

 ऐेे इन्सान मन को मार, क्योंकि तूं है प्राणियों में सरदार ।
मनजीतै तो तू जगजीत, छोड़ दे मनप्रीत होजा ख़बरदार ।।
मन को अपने अधीन करना,  समझो आँधी को रोकने जैसा ।
कोई सु में रत सुरत सूरवीर बीर  ही, कर सकता है कुछ ऐेैसा ।।
ये सुरत चलाते सुमिरन-रुपी गोली, तो मन मर जाता इस से ।
अभ्यास द्वारा कुछ भी असंभव नहीं है, तो कैसे बचेगा मन ये ।।
वीरवान-सुरत को करना चाहे काबू, दुष्ट मन के पँजे का जादू ।
पर ये  सुरत, शब्द-अभ्यास द्वारा मन को ही कर लेता है काबू ।। 
                                    
                                       - ( कुलदीप सिंह 'इकोभलो' )
* रचना तिथि : २००३                    

Saturday, July 29, 2017

* धन्य सतगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये... Dhanya Satguru tapat mahi thand bartaye


योगी योग कराये, ध्यानी ध्यान लगाए ।
तपसी तपस्या करे, व भक्त नाम कमाए ।।
धन्य सतगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।
वाह परमगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।।

कोई तो धयान बताये, कोई ज्ञान सुनाये ।
कोई पूजा पाठ कराये, कोई जाप जपाये ।।
धन्य सतगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।
वाह परमगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।। 

सतगुरू सुरत को शब्द के संग जुड़वाये ।
सूरत-शब्द योग ही नाम कमाई कहलाये ।।
धन्य सतगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।
वाह परमगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।।

काम क्रोध की अग्नि में जगत जलंदा जाये ।
प्रभू  प्रकट हुए, तपत माहि ठण्ड रखण ताये ।।
धन्य सतगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।
वाह परमगुरु तपत माहि ठण्ड बरताये ।।

                                    - ( कुलदीप सिंह 'इकोभलो' ) 

* रचना तिथि : १०-०३-२००२ , संपादन तिथि : २९-०७-२०१७                 

Thursday, July 27, 2017

* प्रभू-आराधना द्वारा मनोसाधना... PRABHU-ARADHANA SE MANO-SADHNA ....

मित्रों हमें प्रभू की साधना नहीं मनोसाधना करनी है, प्रभू तो सधा हुआ है पहले से ही, हमें केवल इक मन को साधना है, और ये मन सधता है प्रभू की आराधना द्वारा, एवं प्रभू-आराधना मनोवृत्तियों को प्रभू की ओर प्रवृत करने से आरम्भ होती है, मन का काम है मनन-सुमिरन करना, इस मन को प्रभू के स्मरण में लगाने की आवश्यक्ता है, प्रभू को देखा नहीं तो प्रभू का सिमरन कैसे हो ? हमे एैसे इन्सान को ढ़ूँढ़ना होगा जिसमे प्रभू का, श्रीभगवान का प्राकट्य हुआ हो... क्योंकि इन्सान-रूपी चोले में ही प्रकट होते हैं श्री-भगवान । एैसा इन्सान इन्साँ-अल्ला है, नर-नारायण है, गाॅड-इन-मैन है, और वही सच्चा सन्त-फ़कीर है, उसके बताये नाम का ही हमें सिमरन करना चाहिये ।                                                                                          
                                                                                                 - ( इकोभलो ) 

*

**रचना तिथि : ०३-०५-२०१५ 

ICoBhaLo www.icobhalo.blogspot.in: * सतसिख सतगुरु... SAT-SHISH SAT-GURU...

ICoBhaLo www.icobhalo.blogspot.in: * सतसिख सतगुरु... SAT-SHISH SAT-GURU...: धन धन सतगुरु, वाह गुरु, गुरु वाह वाह । गुरु से बड़ा न कोई, जहाँ चाह वहाँ राह ।। सतसिख को सतगुरु की होती है चाह । दिल की दिले-दिमाग को...

* सतसिख सतगुरु... SAT-SHISH SAT-GURU...


धन धन सतगुरु, वाह गुरु, गुरु वाह वाह ।

गुरु से बड़ा न कोई, जहाँ चाह वहाँ राह ।।

सतसिख को सतगुरु की होती है चाह ।

दिल की दिले-दिमाग को होती है राह ।।


                           - (इकोभलो)



*  रचना तिथि : १३-०६-२००६ 

* श्री प्रेमार्थी गीता ... Shree Premarthi Geeta...

श्रीदेवों महात्माओँ और संतों ने, प्रेम को बहुत गाया ।
कलगीधर कह गए जिन प्रेम किया तिन प्रभु पाया ।।
सन्त कबीर कह गए, प्रेम के पढ़े से पण्डित होते हैं ।
श्रेष्ट कर्म प्रेम कीजिये, हम वही पाते हैं जो बोते हैं ।।
प्रेम में ऐसा बल है, कि पत्थर को मोम कर दे ।
ईर्षालु को ये लाल प्रेम जी, श्री प्रेमी में बदल दे ।।
पिछड़े हुए पीवें जो प्रेम रस, हो जाएँ वो आगे ।
जो पीने लग जाएँ ये सुरस, उनके भाग जागे ।।
जिसने प्रेम प्याला पीया, उसने जन्म सफल कीया ।
उसे माया से वैराग उपजा, भाया प्रीतम प्यारा पीया ।।
                         
                                  - ( कुलदीप सिंह 'इकोभलो' )
                
*  रचना तिथि : २१-०४-२००७ , सम्पादन तिथि : २७-०७-२०१७    

Tuesday, July 25, 2017

* कुछ ही इन्सान बचे हैं जो इन्सान हैं... Kuchh hee Insaan bachey hain jo insaan hain...

कुछ ही इन्सान बचे हैं जो इन्सान हैं, और हँसते हैं ।
वो पाक जगह  मुबारक है, जहाँ इन्सान बस्ते हैं ।।
इन्सानों की शक्ल में, बहुत कालिये नाग हैं ।
और इन्सानों की शक्ल में ही कालिये काग हैं ।।
ये नाग डँसते तो हैं, पर कभी हँसते नहीं हैं ।
ये काग कौओ कौओ करते हैं हँसते नहीं हैं ।।
कुछ ही इन्सान बचे हैं, जो इन्सान हैं और हँसते हैं ।
वो पाक जगह  मुबारक है, जहाँ इन्सान बस्ते हैं ।।
मनुष्यों की ही कीमत है, बाकि जीव सस्ते हैं । 
वो पवित्र स्थान धन्य है, जहाँ मनुष्य बस्ते हैं ।।
कुछ ही इन्सान बचे हैं, जो इन्सान हैं और हँसते हैं ।
वो पाक जगह  मुबारक है, जहाँ इन्सान बस्ते हैं ।।
                                         
                                                     - ( इकोभलो )


* रचना तिथि : २५-०५-२०१७ , संपादन तिथि : २५-०७-२०१७            

Saturday, July 22, 2017

अष्टाँक-योग : योग के आठ अंक... Ashtank-Yog : Yog ke aath ank

(१) योग -> योगश्चित्तवृत्तिनिरोध: 
(२) हठ योग -> हकार (श्वास) ठकार (प्रश्वास)   सँयम ।
(३) प्राणायाम -> पूरक : कुम्भक : रेचक (१:४ :२) 
(४) चार-साधन -> वैराग, विवेक, षट्सम्पत्ति, मुमोक्षता ।
(५) पाँच-मुद्राऐं -> चाचरी, भूचरी, खेचरी, अगोचरी, उनमुनी ।
(६) षट्सम्पत्ति -> सम, दम, श्रद्धा, समाधानता, उपराम, तितिक्षा ।
(७) सात-चक्र -> गुदा, इन्द्री, नाभि, हृदय, कण्ठ, आज्ञा, सहस्त्रार ।
(८) अष्टाँग-योग -> यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान,                                   समाधी ।
                                                              - ( इकोभलो


* रचना तिथि : २००१ 
    

Friday, July 21, 2017

त्यागें त्यागन नीका... Tyagye tyagan neeka...

त्यागें त्यागन नीका, पायें ज्योति अखण्ड ।
काम क्रोध लोभ मोह त्यागें, त्यागें घमण्ड ।।

डंड को त्यागें, पिण्ड को त्यागें, और त्यागें अण्ड ।
अण्ड को त्यागना ही समझो, त्यागना ये  ब्रह्मण्ड।।
ब्रह्माण्ड रुपी नदिया के पार ही है सच्चा सचखण्ड । 
सभी मनुष्यों की जजनी भंड है, एक पुरुष अभंड ।।

त्यागें त्यागन नीका, पायें ज्योति अखण्ड ।
काम क्रोध लोभ मोह त्यागें, त्यागें घमण्ड ।।

सचखण्ड वसै निरंकार, जिसका नहीं आकार ।
सचखण्ड है, ब्रह्माण्ड रूपी नदिया के उस पार ।।
भवजल के उस पार, निहचल अटल सरकार ।
ब्रह्माण्ड प्रभू का राष्ट्र है, और पति सतकरतार ।।

त्यागें त्यागन नीका, पायें ज्योति अखण्ड ।
काम क्रोध लोभ मोह त्यागें, त्यागें घमण्ड ।।

भाई रे ना त्याग तू अन्न-जल, ना त्याग तू भंड ।
और ना त्याग तू बच्चे, ना त्याग तू खर्चे-फण्ड ।।
बरत ले तूं बरतन नीका, खोज ज्योति अखण्ड ।
नहीं खोजेगा तो पायेगा , जन्म-मृत्यु का दण्ड ।।

त्यागें त्यागन नीका, पायें ज्योति अखण्ड ।
काम क्रोध लोभ मोह त्यागें, त्यागें घमण्ड ।।

                                       - ( इकोभलो )

* रचना तिथि : ०३-०१-२००१ , संपादन तिथि : २१-०७-२०१७ 
                          

आमिल कामिल फ़कीर... Amil kamil faqeer...

                      फ़क़ीरों को नये नये खेल सूझते रहते हैं । एकबार एक आला दर्ज़े के  फ़क़ीर अपने एक मुरीद यानिकि शिष्य को लेकर जगह जगह तमाशा करने का खेल करने की मौज़ में थे । वे तमाशा करने वाले मदारी की तरह डमरू बजाकर भीड़ इक्कठी करते और इक्कठी भीड़ को तमाशा तो न दिखाते लेकिन भाषन अपनी भाषा में ज़रूर सुनाते । जमूरे से बात करने के बहाने ही वे रूहानी-भाषन करते थे और करवाते थे । एकबार डमरू बजाने के बाद भीड़ इक्कठी होने पर :-

डमरू वाला  फ़कीर ->  ओ जमूरे बाला ।
जमूरा बाला ->  जी हुज़ूरे आला ।
फ़कीर -> तुझे मैं जमूरा क्यों कहता हूँ बता ज़रा ।
जमूरा -> क्योंकि मैं जमता मरता हूँ , माया के उरे हूँ ।
फ़कीर -> और मैं , क्या मैं मरता नहीं , माया के उरे नहीं हूँ ?
जमूरा -> नहीं हुज़ूर आप तो जीते जी मर कर सदा की ज़िन्दगी पा चुके हैं , माया के परे जा पहुँचे                             हैं , आप पहुँचे हुए फ़कीर हैं ।
फ़कीर -> आमिल कामिल फ़कीर क्या ?
जमूरा -> हाँ हुज़ूर ।
फ़कीर -> सिफली आमिल क्या ?
जमूरा -> नहीं हुज़ूर सिफली आमिल फ़कीर तो माया के उरे में ही जीते हैं , उनका अमल सिफली                           इल्म का होता है , आप तो उलवी-इल्म के जानकार हैं और इस इल्म के अमल में माहिर                          सच्चे बादशाह हैं ।
फ़कीर -> सच्चा बादशाह ! फिर क्यों हो रहा है ये तमाशा ?
जमूरा -> क्योंकि तमाशा देखने वाले भी सभी जमूरे हैं , आप हुज़ूर मुझे जम से छुड़ाएंगे पार                                लगाएंगे ,  इन्हें भी परे  पहुंचाने आये हैं ।
फ़कीर -> तो बता दे जमूरे इन जमूरों को कि ईलाही कलमा ले लो पार होना है तो , मतलब बैअत                        होकर मुरीद बन जाओ किसी कामिल आमिल मुर्शिद के , कामिल फ़क़ीर के ।
जमूरा -> सुनो सुनो सब जमूरे भाई -बहनों और बुज़ुर्गो , रूहानी कलमा ले लो पार होना है तो ,                             बैअत यानि दीक्षित होकर मुरीद बन जाओ जमों से छुटना है तो । सुनो सुनो..... । 

                                                                                                     - ( इकोभलो )


* रचना तिथि : २००१ , संपादन तिथि : २१-०७-२०१७  

Wednesday, July 19, 2017

बोलू धन धन धन परम सतगुरू... Bolu dhan dhan dhan Param Satguru...


ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः

बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।
श्री-स्वामी धन श्री परम सतगुरू ।। - ( टेक )


तुमरे नाम का सुमिरन रोज़ करूँ ।
सुमिरन ना हो तो नारा ही उच्चारूँ ।।
बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।।।
तेरा ही आसरा है परम सतगुरू ।।।।


बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।
श्री-स्वामी धन श्री परम सतगुरू ।।


मैं ना प्रभू तुमरी आरती उतार सकूँ ।
क्योंकि तुम निर-आरत मैं आरत हूँ ।।
मैं आरत क्या आरती उतारूँ या हरूँ ।।।
तूं सर्वस्य आरती हरे परम सतगुरू ।।।।


बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।
श्री-स्वामी धन श्री परम सतगुरू ।।


मन क्षर है, मैं दूषित मनुष्य हूँ ।
क्षर-दूषन के परे निकलना चाहूँ ।।
मन जीतूँ या ये मन-हरे सतगुरू ।।।
सर्वस्य मनो हरे तूं परम सतगुरू ।।।।


बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।
श्री-स्वामी धन श्री परम सतगुरू ।।


                              - (
इकोभलो )

Monday, July 17, 2017

काल, माया, तन, मन, सन, धन के अर्थ :- Meaning of Kaal, Maya, Tan, Man, San, Dhan, Jan, Gan, Ran

काल... माया को कहते हैं ।

माया... पँचतत्वों को कहते हैं ।


तन... स्थूल-तत्वों को कहते हैं ।


मन
... सूक्ष्म-तत्वों को कहते हैं ।


सन
... जीव-आत्मा को कहते हैं ।


धन
... निरन्कार-परमात्मा को कहते हैं ।


जन
... जनता को, प्रजा को कहते हैं ।


गन
... देवता को, सुर को कहते हैं ।


रन
... युद्ध को, रण को कहते हैं ।


                        - ( इकोभलो )

Saut-A-Aasmaan ( Sout Aasmaani )... सौत-ऐ-आसमानी

सुन लिया है जिसने प्यारा एक सौत । पार किया है उसी ने दायरा ऐ मौत ।।
सुनना चाहता वो जिसे ख़ौफ़ ऐ मौत । असर ऐ ख़ौफ़ से होता शौक़ ऐ सौत ।। 
                                             - ( इकोभलो ) 

Sunday, July 16, 2017

* Yo Brahum ka anda khopdi sae ik jhopdi... यो ब्रह्म का अण्डा खोपड़ी सै इक झोपड़ी

यो ब्रह्म का अण्डा खोपड़ी सै इक झोपड़ी ।
झोपड़ी के रहणिया के धोरे माल करोड़ी ।।
करोड़ी माल फिर भी कँगाल आँखे रो पड़ी ।
झल्ला सर पै भारी उठाये ढोहवै टोकरी ।।
माल ख़ज़ाना गुपत छुपत सै माँगै फिरै सै नौकरी ।
माल ढून्ढ  कै मालिक बन देता रह फिर  नौकरी ।।
सुन लो माई-बापू बच्चे छौकरा और छौकरी ।
माल ढूँढ के मालिक बनो सब इसे नोट करी ।


                                       
                                          - ( इकोभलो ) 

       
*  रचना तिथि : १२-०१-२००१,  संपादन तिथि : १६-०७-२०१७   

Wednesday, July 12, 2017

* एैसा इन्साँ वाले कहते हैं... ( Aisa Insaan waley kehtey hain )

ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः
सीधा-साधा ही साधू है, और बिगड़ा हुआ तो है शैतान ।
साधू और शैतान के जीने का आधार इक श्री भगवान ।।


सर्वभक्ति एवं ग्यान से सम्पन्न इक ही है और न दूजा कोई ।
सर्वस्य-आधार जो आप निर्आधार है, भगवान कहावे सोई ।।


भ से भक्ति या प्रेम, ग से ग्यान सम्पन्न प्रकाशवान-भगवान ।
प्रेम-प्रकाश ही कमाते कोस्मोपोलिटन-सर्वदेशी भक्त-इन्सान ।।


इन्साँ कोस्मोपोलिटन भक्त लोक उन लोगों को कहते हैं ।
जो पूरे विश्व को एक कुटुम्ब-परिवार समझकर रहते हैं ।।


"वसुधैव कुटुमबकम्" पुरानी-उक्ति को चरित्रार्थ करते हैं ।
"मानुख की जात एको पहचानते हैं" का दम भरते हैं ।।


सन्त उनको कहते हैं जो शान्ति पा गये सन्तुष्टि में रहते हैं ।
पहले इन्सान बनो फिर साधू-सन्त एैसा इन्साँ वाले कहते हैं ।।


                                               
- (इकोभलो)


* रचना तिथि : ००-००-२००१, संपादन तिथि : १२-०७-२०१७  

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