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Saturday, July 1, 2017

* Trilokee me rehnaa hee bekaaraa hai " त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है " (Bhajan/Shabda/Geet)

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

इस त्रिलोकी में नहीं है रहना ।  

मानो सन्त सतगुरु का कहना । 

यहां दुःख के  सिवाए कुछ ना ।

कुछ दिन  ही मोर ने नचना ।
  
त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

खुशियाँ है यहाँ बहुत ही थोड़ी ।

 मौत हुई रोते हैं ज़ोरम ज़ोरी ।

मौत ने छीनी जो माया जोड़ी ।

दुःख बहुत पाया आयु थोड़ी ।

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

कुलदीप दुखिया सब संसार । 

काल की पड़ती सबको मार ।

अब तो ज़रा मन में विचार ।

आर रहना कि रहना है पार ।

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

चौथा लोक है तीन से न्यारा ।

सतगुरु ने ये वचन उचारा ।

उसी लोक  में करो गुज़ारा ।

जो सुवर्ग से सुन्दर प्यारा ।

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

सत देश में हमको है जाना ।

तत जगत मुसाफ़िर खाना ।

सत्संगत में रहो भाई बहना ।

मानो सन्तसत्गुरु का कहना । 

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

                           - (कुलदीप सिंह इकोभलो)
 *  रचना तिथि  : १७-०२-२००१, प्रकाशन तिथि : ०१-०७-२०१७  

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