त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।
चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।
इस त्रिलोकी में नहीं है रहना ।
मानो सन्त सतगुरु का कहना ।
यहां दुःख के सिवाए कुछ ना ।
कुछ दिन ही मोर ने नचना ।
त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।
चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।
खुशियाँ है यहाँ बहुत ही थोड़ी ।
मौत हुई रोते हैं ज़ोरम ज़ोरी ।
मौत ने छीनी जो माया जोड़ी ।
दुःख बहुत पाया आयु थोड़ी ।
त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।
चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।
कुलदीप दुखिया सब संसार ।
काल की पड़ती सबको मार ।
अब तो ज़रा मन में विचार ।
आर रहना कि रहना है पार ।
त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।
त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।
चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।
चौथा लोक है तीन से न्यारा ।
सतगुरु ने ये वचन उचारा ।
उसी लोक में करो गुज़ारा ।
जो सुवर्ग से सुन्दर प्यारा ।
त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।
चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।
सत देश में हमको है जाना ।
तत जगत मुसाफ़िर खाना ।
सत्संगत में रहो भाई बहना ।
मानो सन्तसत्गुरु का कहना ।
त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।
चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।
- (कुलदीप सिंह इकोभलो)
* रचना तिथि : १७-०२-२००१, प्रकाशन तिथि : ०१-०७-२०१७
* रचना तिथि : १७-०२-२००१, प्रकाशन तिथि : ०१-०७-२०१७
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