मित्रों हमें प्रभू की साधना नहीं मनोसाधना करनी है, प्रभू तो सधा हुआ है पहले से ही, हमें केवल इक मन को साधना है, और ये मन सधता है प्रभू की आराधना द्वारा, एवं प्रभू-आराधना मनोवृत्तियों को प्रभू की ओर प्रवृत करने से आरम्भ होती है, मन का काम है मनन-सुमिरन करना, इस मन को प्रभू के स्मरण में लगाने की आवश्यक्ता है, प्रभू को देखा नहीं तो प्रभू का सिमरन कैसे हो ? हमे एैसे इन्सान को ढ़ूँढ़ना होगा जिसमे प्रभू का, श्रीभगवान का प्राकट्य हुआ हो... क्योंकि इन्सान-रूपी चोले में ही प्रकट होते हैं श्री-भगवान । एैसा इन्सान इन्साँ-अल्ला है, नर-नारायण है, गाॅड-इन-मैन है, और वही सच्चा सन्त-फ़कीर है, उसके बताये नाम का ही हमें सिमरन करना चाहिये ।
- ( इकोभलो )
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**रचना तिथि : ०३-०५-२०१५
- ( इकोभलो )
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**रचना तिथि : ०३-०५-२०१५
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