(१) ढूँढो इल्मी आलिम नहीं, आमिल मुर्शिद को ।
नौसिखिया फ़ाज़िल नहीं, कामिल मुर्शिद को ।।
(२) जो साहब आरिफ़ होते हैं उनकी मज़लिस में मैअ-ए-इरफ़ाँ बँटती है ।
जो उनकी सोहबत करते और कलमा पढ़ते उनकी मज़े में कटती है ।।
(३) जो ताइब होते हैं वो तौबा कीया करते हैं ।
बुराईयोँ को जल्द ही छोड़ दीया करते हैं ।।
(४) हक़-ता'अला वो हक़ीक़त है, सच है, जो बोला नहीं जाता ।
राज़-ए-हक़ मेहरे-मुर्शिद से खुलता है, खोला नहीं जाता ।।
(५) बहुत मुश्किल है बनना कमल-उल-गन्दगी ।
ज़नाब चमन-ए-ग़ुलाब में गुज़ारो ये ज़िन्दगी ।।
(६) बहुत मुश्क़िल है बनना कीचड़ का कमल ।
गुलाबी बाग़ में रह कर करो रूहानी अमल ।।
(७) वक़्त पड़ने पर गधे को भी सर साब कहना पड़ता है ।
तुम के तो लायक़ न हो, उसे भी आप कहना पड़ता है ।।
- ( इकोभलो )
* रचना तिथि : १३-०६-२००६, संपादन तिथि : १३-०८-२०१७
नौसिखिया फ़ाज़िल नहीं, कामिल मुर्शिद को ।।
(२) जो साहब आरिफ़ होते हैं उनकी मज़लिस में मैअ-ए-इरफ़ाँ बँटती है ।
जो उनकी सोहबत करते और कलमा पढ़ते उनकी मज़े में कटती है ।।
(३) जो ताइब होते हैं वो तौबा कीया करते हैं ।
बुराईयोँ को जल्द ही छोड़ दीया करते हैं ।।
(४) हक़-ता'अला वो हक़ीक़त है, सच है, जो बोला नहीं जाता ।
राज़-ए-हक़ मेहरे-मुर्शिद से खुलता है, खोला नहीं जाता ।।
(५) बहुत मुश्किल है बनना कमल-उल-गन्दगी ।
ज़नाब चमन-ए-ग़ुलाब में गुज़ारो ये ज़िन्दगी ।।
(६) बहुत मुश्क़िल है बनना कीचड़ का कमल ।
गुलाबी बाग़ में रह कर करो रूहानी अमल ।।
(७) वक़्त पड़ने पर गधे को भी सर साब कहना पड़ता है ।
तुम के तो लायक़ न हो, उसे भी आप कहना पड़ता है ।।
- ( इकोभलो )
* रचना तिथि : १३-०६-२००६, संपादन तिथि : १३-०८-२०१७
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