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Monday, December 4, 2017

* ऐसा कलियुग आया रे... Aisa KALIYUG aaya re !

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ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।। (टेक)

 नारी के पीछे मन लगे , गुरू के लगने से घबराया रे ।
मीठा बिल्कुल ना भावे, कड़वा पापी मन को भाया रे ।।

ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।



नील कपड़ों को देने लगे, सुन्दर लाल   ना रंगाया रे ।
बाल काले करने लगे , देखो सफ़ेद से शरमाया रे ।।


ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।


निन्दा चुगलियाँ करता रहे, गुरू-चर्चा से कतराया रे ।
दूजों का भार उतारता फिरे, अपने सिर भार चढ़ाया रे ।।


ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।


बेडरूम में चप्पलें ना ले जाते, रसोई में ले जाया रे ।
बाहर से तो साफ़ रहते, भीतर माँस-शराब धराया रे ।।


ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।


बाहर भण्डारे करता रहे, घर में भूखी मरती माया रे ।
मननै सुधारन में ना लगे, सँवारती रहे सदा काया रे ।

 
ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।


हरि-भजन में मस्त ना होवे, नारी-भजन में मस्ताया रे ।
भजन-शबद ना भावे, नारी-भजने को डी.जे. बजवाया रे ।।


ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।


अन्त:करन की सुनने वालों ने ही, परम-पद को पाया रे ।
अन्तर-आत्मा की ना सुनने दे, पापी-मन ने भरमाया रे ।।


ऐसा कलियुग आया रे, हाँ ऐसा कलिकाल छाया रे ।।।


                                              - ( इकोभलो )


* रचना तिथि : 07 -नवम्बर -1999,  प्रकाशन तिथि : 04 -दिसम्बर -2017  

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