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Friday, July 21, 2017

त्यागें त्यागन नीका... Tyagye tyagan neeka...

त्यागें त्यागन नीका, पायें ज्योति अखण्ड ।
काम क्रोध लोभ मोह त्यागें, त्यागें घमण्ड ।।

डंड को त्यागें, पिण्ड को त्यागें, और त्यागें अण्ड ।
अण्ड को त्यागना ही समझो, त्यागना ये  ब्रह्मण्ड।।
ब्रह्माण्ड रुपी नदिया के पार ही है सच्चा सचखण्ड । 
सभी मनुष्यों की जजनी भंड है, एक पुरुष अभंड ।।

त्यागें त्यागन नीका, पायें ज्योति अखण्ड ।
काम क्रोध लोभ मोह त्यागें, त्यागें घमण्ड ।।

सचखण्ड वसै निरंकार, जिसका नहीं आकार ।
सचखण्ड है, ब्रह्माण्ड रूपी नदिया के उस पार ।।
भवजल के उस पार, निहचल अटल सरकार ।
ब्रह्माण्ड प्रभू का राष्ट्र है, और पति सतकरतार ।।

त्यागें त्यागन नीका, पायें ज्योति अखण्ड ।
काम क्रोध लोभ मोह त्यागें, त्यागें घमण्ड ।।

भाई रे ना त्याग तू अन्न-जल, ना त्याग तू भंड ।
और ना त्याग तू बच्चे, ना त्याग तू खर्चे-फण्ड ।।
बरत ले तूं बरतन नीका, खोज ज्योति अखण्ड ।
नहीं खोजेगा तो पायेगा , जन्म-मृत्यु का दण्ड ।।

त्यागें त्यागन नीका, पायें ज्योति अखण्ड ।
काम क्रोध लोभ मोह त्यागें, त्यागें घमण्ड ।।

                                       - ( इकोभलो )

* रचना तिथि : ०३-०१-२००१ , संपादन तिथि : २१-०७-२०१७ 
                          

आमिल कामिल फ़कीर... Amil kamil faqeer...

                      फ़क़ीरों को नये नये खेल सूझते रहते हैं । एकबार एक आला दर्ज़े के  फ़क़ीर अपने एक मुरीद यानिकि शिष्य को लेकर जगह जगह तमाशा करने का खेल करने की मौज़ में थे । वे तमाशा करने वाले मदारी की तरह डमरू बजाकर भीड़ इक्कठी करते और इक्कठी भीड़ को तमाशा तो न दिखाते लेकिन भाषन अपनी भाषा में ज़रूर सुनाते । जमूरे से बात करने के बहाने ही वे रूहानी-भाषन करते थे और करवाते थे । एकबार डमरू बजाने के बाद भीड़ इक्कठी होने पर :-

डमरू वाला  फ़कीर ->  ओ जमूरे बाला ।
जमूरा बाला ->  जी हुज़ूरे आला ।
फ़कीर -> तुझे मैं जमूरा क्यों कहता हूँ बता ज़रा ।
जमूरा -> क्योंकि मैं जमता मरता हूँ , माया के उरे हूँ ।
फ़कीर -> और मैं , क्या मैं मरता नहीं , माया के उरे नहीं हूँ ?
जमूरा -> नहीं हुज़ूर आप तो जीते जी मर कर सदा की ज़िन्दगी पा चुके हैं , माया के परे जा पहुँचे                             हैं , आप पहुँचे हुए फ़कीर हैं ।
फ़कीर -> आमिल कामिल फ़कीर क्या ?
जमूरा -> हाँ हुज़ूर ।
फ़कीर -> सिफली आमिल क्या ?
जमूरा -> नहीं हुज़ूर सिफली आमिल फ़कीर तो माया के उरे में ही जीते हैं , उनका अमल सिफली                           इल्म का होता है , आप तो उलवी-इल्म के जानकार हैं और इस इल्म के अमल में माहिर                          सच्चे बादशाह हैं ।
फ़कीर -> सच्चा बादशाह ! फिर क्यों हो रहा है ये तमाशा ?
जमूरा -> क्योंकि तमाशा देखने वाले भी सभी जमूरे हैं , आप हुज़ूर मुझे जम से छुड़ाएंगे पार                                लगाएंगे ,  इन्हें भी परे  पहुंचाने आये हैं ।
फ़कीर -> तो बता दे जमूरे इन जमूरों को कि ईलाही कलमा ले लो पार होना है तो , मतलब बैअत                        होकर मुरीद बन जाओ किसी कामिल आमिल मुर्शिद के , कामिल फ़क़ीर के ।
जमूरा -> सुनो सुनो सब जमूरे भाई -बहनों और बुज़ुर्गो , रूहानी कलमा ले लो पार होना है तो ,                             बैअत यानि दीक्षित होकर मुरीद बन जाओ जमों से छुटना है तो । सुनो सुनो..... । 

                                                                                                     - ( इकोभलो )


* रचना तिथि : २००१ , संपादन तिथि : २१-०७-२०१७  

Wednesday, July 19, 2017

बोलू धन धन धन परम सतगुरू... Bolu dhan dhan dhan Param Satguru...


ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः

बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।
श्री-स्वामी धन श्री परम सतगुरू ।। - ( टेक )


तुमरे नाम का सुमिरन रोज़ करूँ ।
सुमिरन ना हो तो नारा ही उच्चारूँ ।।
बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।।।
तेरा ही आसरा है परम सतगुरू ।।।।


बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।
श्री-स्वामी धन श्री परम सतगुरू ।।


मैं ना प्रभू तुमरी आरती उतार सकूँ ।
क्योंकि तुम निर-आरत मैं आरत हूँ ।।
मैं आरत क्या आरती उतारूँ या हरूँ ।।।
तूं सर्वस्य आरती हरे परम सतगुरू ।।।।


बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।
श्री-स्वामी धन श्री परम सतगुरू ।।


मन क्षर है, मैं दूषित मनुष्य हूँ ।
क्षर-दूषन के परे निकलना चाहूँ ।।
मन जीतूँ या ये मन-हरे सतगुरू ।।।
सर्वस्य मनो हरे तूं परम सतगुरू ।।।।


बोलूँ धन धन धन परम सतगुरू ।
श्री-स्वामी धन श्री परम सतगुरू ।।


                              - (
इकोभलो )

Monday, July 17, 2017

काल, माया, तन, मन, सन, धन के अर्थ :- Meaning of Kaal, Maya, Tan, Man, San, Dhan, Jan, Gan, Ran

काल... माया को कहते हैं ।

माया... पँचतत्वों को कहते हैं ।


तन... स्थूल-तत्वों को कहते हैं ।


मन
... सूक्ष्म-तत्वों को कहते हैं ।


सन
... जीव-आत्मा को कहते हैं ।


धन
... निरन्कार-परमात्मा को कहते हैं ।


जन
... जनता को, प्रजा को कहते हैं ।


गन
... देवता को, सुर को कहते हैं ।


रन
... युद्ध को, रण को कहते हैं ।


                        - ( इकोभलो )

Saut-A-Aasmaan ( Sout Aasmaani )... सौत-ऐ-आसमानी

सुन लिया है जिसने प्यारा एक सौत । पार किया है उसी ने दायरा ऐ मौत ।।
सुनना चाहता वो जिसे ख़ौफ़ ऐ मौत । असर ऐ ख़ौफ़ से होता शौक़ ऐ सौत ।। 
                                             - ( इकोभलो ) 

Sunday, July 16, 2017

* Yo Brahum ka anda khopdi sae ik jhopdi... यो ब्रह्म का अण्डा खोपड़ी सै इक झोपड़ी

यो ब्रह्म का अण्डा खोपड़ी सै इक झोपड़ी ।
झोपड़ी के रहणिया के धोरे माल करोड़ी ।।
करोड़ी माल फिर भी कँगाल आँखे रो पड़ी ।
झल्ला सर पै भारी उठाये ढोहवै टोकरी ।।
माल ख़ज़ाना गुपत छुपत सै माँगै फिरै सै नौकरी ।
माल ढून्ढ  कै मालिक बन देता रह फिर  नौकरी ।।
सुन लो माई-बापू बच्चे छौकरा और छौकरी ।
माल ढूँढ के मालिक बनो सब इसे नोट करी ।


                                       
                                          - ( इकोभलो ) 

       
*  रचना तिथि : १२-०१-२००१,  संपादन तिथि : १६-०७-२०१७   

Wednesday, July 12, 2017

* एैसा इन्साँ वाले कहते हैं... ( Aisa Insaan waley kehtey hain )

ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः
सीधा-साधा ही साधू है, और बिगड़ा हुआ तो है शैतान ।
साधू और शैतान के जीने का आधार इक श्री भगवान ।।


सर्वभक्ति एवं ग्यान से सम्पन्न इक ही है और न दूजा कोई ।
सर्वस्य-आधार जो आप निर्आधार है, भगवान कहावे सोई ।।


भ से भक्ति या प्रेम, ग से ग्यान सम्पन्न प्रकाशवान-भगवान ।
प्रेम-प्रकाश ही कमाते कोस्मोपोलिटन-सर्वदेशी भक्त-इन्सान ।।


इन्साँ कोस्मोपोलिटन भक्त लोक उन लोगों को कहते हैं ।
जो पूरे विश्व को एक कुटुम्ब-परिवार समझकर रहते हैं ।।


"वसुधैव कुटुमबकम्" पुरानी-उक्ति को चरित्रार्थ करते हैं ।
"मानुख की जात एको पहचानते हैं" का दम भरते हैं ।।


सन्त उनको कहते हैं जो शान्ति पा गये सन्तुष्टि में रहते हैं ।
पहले इन्सान बनो फिर साधू-सन्त एैसा इन्साँ वाले कहते हैं ।।


                                               
- (इकोभलो)


* रचना तिथि : ००-००-२००१, संपादन तिथि : १२-०७-२०१७  

Monday, July 10, 2017

* Sacha Suvaad... " सच्चा सुवाद "

 ^ 
।। सच्चा सुवाद आँखों तक मिलता नहीं । मिले पार मुखड़े के किन्तु भीतर ही ।।
।। कूड़ कामना छोड़ बन सच्चा कामी । सच्चा नाम सिमर ढूँढ सच्चा नामी ।।
।।
।। कूड़ काम पिपासु सुवाद लेता कौड़े । कामणि के लिंग  सँग लिंग को जोड़े ।।
।। सच्चा मीठा पा ले जो इन्द्रियाँ छोड़े । और सुरत को शब्द के  सँग जोड़े ।।
।।
।। असल में तन को सुवाद आता नहीं । सुवाद-सरूप सुरत को सुवाद आता सही ।।
।। सुरत तन छोड़े तो जड़ तन भाता नहीं । बिना-सुवाद कभी सुवाद  आता  नहीं ।।
।।
।।                                                                                       - ( इकोभलो )
।।
।।
__ 
!__!_

* रचना तिथि : २६-१०-१९९८ , संपादन तिथि :  १०-०७-२०१७ 

Saturday, July 8, 2017

* Satguru Nu Tu Simar man mere ... ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ...

ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ

                     ਸਤਗੁਰੂ  ਨੂੰ ਤੂ ਸਦਾ ਮੰਨ  ਨੇੜੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                       ਚੌਰਾਸੀ  ਲੱਖ ਦੇ ਮੁਕਾ ਲੈ ਗੇੜੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                    ਚੌਰਾਸੀ ਭੋਗਦੇ ਯੁੱਗ ਬੀਤੇ ਬਥੇਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                 ਸਿਮਰਨ ਤੋਂ ਕਰਮਾਂ ਦੇ ਹੋਣੇ ਨਿਬੇੜੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                    ਧੰਨ ਹਨ ਸਤਗੁਰੂ  ਸਾਹਿਬ ਮੇਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                     ਮਨ ਨੂੰ ਸੌਂਪ ਸਤਗੁਰੂ ਦੇ ਅਗੇਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
             ਬੈਠਕ ਕਰ ਸਿਮਰਨ ਦੀ ਹਨੇਰੇ ਸਵੇਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                   ਸਤਸੰਗ ਅਤੇ ਸਿਮਰਨ ਧੰਨ ਤੇਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                ਨਿਕਲ ਤਿਰੀ ਗ਼ਮ ਪੁਰੀਆਂ ਤੋਂ ਪਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।
                ਅੱਪੜ ਆਪਣੇ ਸਤਲੋਕ ਬੇਗਮ ਪੁਰੇ ।
ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ , ਸਤਗੁਰੂ ਨੂੰ ਤੂ ਸਿਮਰ ਮਨ ਮੇਰੇ ।।

                                           - ( ਕੁਲਦੀਪ ਸਿੰਘ  'ਇਕੋਭਲੋ ' )

*  ਰਚਨਾ  ਤਰੀਖ : 06-03-2001     

Friday, July 7, 2017

* Boojho to maaney Boojhakkad Laal बूझो तो माने... बूझक्कड़ लाल !

एक दिन लालाजी और लालबुझक्कड़ की हुई दिमागी टक्कर !
लाला जी ने सवाल पूछा, तुरन्त  सोचने लगा लालबुझक्कड़ !!
सवाल था लाल कितने हैं, बूझो तो माने बूझक्कड़ लाल
तुम बूझ लोगे तब  ही तुम्हें मानूँगा, ग़ज़ब इंसान-ए-कमाल !!
दिमाग़ मे तोला, फिर बूझक्कड़ बोला . . .  एक है प्यारे लाल !
दूसरा प्रेम लाल, और तीसरा व चौथा, अनोखे व न्यारे लाल !!
पाँचवाँ मुंगेरी लाल, और छठा व सातवाँ, नौरंगी व पन्ना लाल !
आठवाँ भजन लाल, और नौवाँ व दसवाँ, मोती व मुन्ना लाल !!
ग्यारहवाँ राम लाल, और बारहवां व तेरहवाँ, हज़ारी व सोहन लाल !
चौदहवाँ हीरा लाल, और पंद्रहवाँ व सोलहवां, रतन व मोहन लाल !!
सत्रहवाँ सुन्दर लाल, और अठारहवाँ व उन्नीसवाँ, कीमती व जवाहर लाल !
बीसवां बंसी लाल, इक्कीसवाँ व बाईसवाँ, अमृत व मनोहर लाल !!
इतने सारे लालों को , बूझ चुका जब, लालबुझक्कड़ बूझक्कड़ लाल !
तब लालाजी कह उठे, लालबुझक्कड़ बूझक्कड़ लाल, तू है कमाल !!


                                                                     - ( इकोभलो )


* रचना तिथि  : 13-06-2006, संपादन तिथि : १०-०७-२०१७ 

Saturday, July 1, 2017

* Trilokee me rehnaa hee bekaaraa hai " त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है " (Bhajan/Shabda/Geet)

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

इस त्रिलोकी में नहीं है रहना ।  

मानो सन्त सतगुरु का कहना । 

यहां दुःख के  सिवाए कुछ ना ।

कुछ दिन  ही मोर ने नचना ।
  
त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

खुशियाँ है यहाँ बहुत ही थोड़ी ।

 मौत हुई रोते हैं ज़ोरम ज़ोरी ।

मौत ने छीनी जो माया जोड़ी ।

दुःख बहुत पाया आयु थोड़ी ।

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

कुलदीप दुखिया सब संसार । 

काल की पड़ती सबको मार ।

अब तो ज़रा मन में विचार ।

आर रहना कि रहना है पार ।

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

चौथा लोक है तीन से न्यारा ।

सतगुरु ने ये वचन उचारा ।

उसी लोक  में करो गुज़ारा ।

जो सुवर्ग से सुन्दर प्यारा ।

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

सत देश में हमको है जाना ।

तत जगत मुसाफ़िर खाना ।

सत्संगत में रहो भाई बहना ।

मानो सन्तसत्गुरु का कहना । 

त्रिलोकी में रहना ही बेकारा है ।

चलो जीव जहाँ देश हमारा है ।

                           - (कुलदीप सिंह इकोभलो)
 *  रचना तिथि  : १७-०२-२००१, प्रकाशन तिथि : ०१-०७-२०१७  

* Nanak ' NAAM ' jahaaz hai "नानक नाम जहाज़ है चढ़े सो उतरे पार"

_'मत'_ ... यूं तो अनेकों मत हैं लेकिन यदि इन्हें दो हिस्सों में बाँटें तो एक है 'गुरूमत', और दूसरी इसके बिल्कुल विपरीत प्रकार की मत है 'रूगुमत' ।
_'गुरूमत'_ ... यानि कि उजलि-मत, पाक-रूह की एैसी गौरी उजलि-मत जो कि मैली-मत को हरि के खा जाती है और पचाइके उजलि-मत मेंं रूपान्तरित कर देती है ।
इस रूपान्तरण के साथ ही किसी रोज़ अधिआत्मायें या कैद-रूहें निज़ात-(मुक्ति) को भी पा जाती हैं, यानिकि रूहें इस उजलि-मत-(गौरी-नफ़्स) की 'सोहबत-ओ-मदद' से जिस्म की कैद से छुटकारा भी पा जाती हैं । गुरूमत का सार 'नाम' है, लेकिन किरतम-(कृत्रिम्) नाम नहीं सच-(सत) नाम ही  सार है । और ये स्थूल तत्वों के 'परम्परा एवम् पूर्वला' है । इसलिये ही नाम को जहाज़ कहा जाता है, ये हमें पार उतार देता है, और जिनका 'पार-उतारा' हो गया वे ही परम-सन्त हैं । 'श्री गुरूग्रँथ साहिब' की बाणी कहती है : "नानक नाम जहाज़ है चढ़े सो उतरे पार" ।


                     _'मत'_ को मुख्य-इन्द्रि 'मन' भी कहते हैं... सुन्दर-मन को 'सुमन' भी कहते हैं । इस सुमन का सँग-(साथ) एवम् सहायता पाकर हम छोटे-चेतन (अधिआत्मायें,पँच-तत्वों के अधीन चेतनायें) जब 'नाम-ध्यान' में श्रम करते हैं तो हम उजलिमत-(सुमन) वाली आत्मायें तन के बँधन (जिस्मानी कैद) से छुट जाती हैं । 'श्री गुरूग्रँथ साहिब' की बाणी कहती है :- "जिनि नाम धियाया गये मसकति घाल । नानक ते मुख उजले केति छुटि नाल ।।"
                                                                                                                  - ( इकोभलो )


* रचना तिथि : वर्ष २००१ , संपादन तिथि : ०१ -०७ -२०१७ , प्रकाशन तिथि : ०१-०७-२०१७ 

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